Wednesday 13 July 2016

साइबर ट्रौलिंग और राजनीतिक गोलबंदी



  पिछले दिनों ‘महिला एवं बाल विकास मंत्री’ मेनका गाँधी ने सोशल मीडिया पर महिलाओं के साथ होने वाली ट्रौलिंग को रोकने के लिए ‘एंटी ट्रौलिंग’ की घोषणा की. जो कि महिलाओं के ऑनलाइन प्रताड़ना के मामलों पर निगरानी रखेगी. इसके तहत एक इकाई केवल प्रभावित महिलाओं द्वारा ईमेल के जरिए की गयी शिकायतों पर कार्रवाई करेगी. जिसमें गाली गलौज वाले व्यवहार, प्रताड़ना, नफरत भरे आचरण के बारे में शिकायत मिलेगी. इस कार्य की ज़िम्मेदारी किसी एक समर्पित व्यक्ति की होगी जिस से मंत्रालय ट्विटर पर ट्रौलिंग की शिकायतों पर सीधे बात कर सके. इसके लिये दिल्ली महिला आयोग ने भी मेनका का समर्थन कर उनकी प्रशंसा की है. हालाँकि मेनका ने ये भी साफ़ कर दिया है कि ‘एंटी ट्रौलिंग’ का मतलब साइबर निगरानी करना कतई नहीं है.

साभार : google 


    गौरतलब है कि आनलाइन प्रताड़ना से महिलाओं की सुरक्षा हेतु मेनका गाँधी की इस पहल पर राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष ललिता कुमारमंगलम ने उस समय कड़ी आपत्ति जतायी थी जब आयोग से आनलाइन प्रताड़ना के मामलों की निगरानी करने को कहा गया था. उन्होंने बताया था, आप इंटरनेट की निगरानी नहीं कर सकते. यह एक खुली जगह है. यह एक आकाशगंगा की तरह है जहां अरबों ट्विटर एकाउंट हैं और कोई भी संगठन ट्विटर पर नजर नहीं रख सकता. किसी के लिए भी यह कहना संभव नहीं है कि हम हर किसी के ट्वीट पर नजर रख रहे हैं.

  गत महीने ही गृह मंत्रालय इससे पहले सायबर क्राइम निवारण योजना भी विशेष रूप से महिलाओं व बच्चों के साथ होने वाले साइबर अपराधों को रोकने के लिए तैयार की है। इसमें सायबर विशेषज्ञों की टीम अश्लील मैसेज व पोर्न वीडियो भेजना, अश्लील ई-मेल या छवि खराब करने के उद्देश्य से महिलाओं, बच्चियों के मूल फोटो में परिवर्तित कर पोर्नोग्राफी विषय-वस्तु तैयार करने जैसे मामलों को देखेगी। जिसमें कम से कम समय में आरोपियों तक पहुंचने की बात की गयी थी.

  न्यूयार्क की एक रिपोर्ट के अनुसार इन्टरनेट का इस्तेमाल करने वाली लगभग तीन चौथाई महिलायें किसी न किसी किस्म की साइबर हिंसा का शिकार हैं. ‘कॉम्बैटिंग ऑनलाइन वायलेंस अगेंस्ट वुमन एंड गर्ल्स : अ वर्ल्ड वाइड वेक–अप’ नाम की इसे सर्वे में लगभग 86 देशों का अध्ययन किया गया. जिसके रिपोर्ट में बताया गया कि उनमें कानून लागू करने की संस्थाएं ऐसे मामलों में से केवल 26 फीसद मामलों की ही उपयुक्त कार्यवाही कर पाती हैं. सर्वे में ये भी सामने आया है कि भारत में साइबर अपराध के मामलों में शिकायत करने में महिलाओं की संख्या काफी कम है. रिपोर्ट के अनुसार, भारत में केवल 35 फीसद महिलाओं ने साइबर अपराध की शिकायत की, जबकि 46.7 फीसद पीढित महिलाओं ने शिकायत ही नहीं की. वहीँ 18.3 फीसद महिलाओं को इस बात का अंदाज़ा ही नहीं था की वे साइबर अपराध की शिकार हो रही हैं.

  साइबर की दुनिया में महिलाओं को निशाना बनाकर सबसे ज्यादा जिस अपराध को अंजाम दिया जाता है, वह है - साइबर स्टाकिंग यानी साइबर वर्ल्ड में पीछा करना या पीछे से हमला करना। बार-बार टेक्स्ट मैसेज भेजना, फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजना, स्टेटस अपडेट पर नजर रखना और इंटरनेट मॉनिटरिंग इसी अपराध की श्रेणी में आते हैं। आईपीसी की धारा 354 डी के तहत यह दंडनीय अपराध है। साइबर स्पाइंग भी एक अन्य तरह का साइबर अपराध है। आईटी एक्ट की धारा 66 ई के अंतर्गत यह दंडनीय अपराध है। इसमें चैंजिंग रूम, लेडिज वॉशरूम, होटल रूम्स और बाथरूम्स आदि स्थानों पर रिकॉर्डिंग डिवाइस लगाए जाते हैं। तीसरे तरह का अपराध जो महिलाओं पर केंद्रीत है- वह है साइबर पॉर्नोग्राफी। इसके तहत महिलाओं के अश्लील फोटो या वीडियो हासिल कर उन्हें ऑनलाइन पोस्ट कर दिया जाता है। अधिकांश मामलों में अपराधी फोटो के साथ छेड़छाड़ करते हैं और बदनाम करने, परेशान और ब्लैकमेल करने के लिए उनका इस्तेमाल करता है। इस तरह के अपराधों में आईटी एक्ट की धारा 67 और 67ए के अंतर्गत आते हैं. वहीँ साइबर बुलिंग इसी क्रम में चौथी तरह का अपराध है। जिसे बड़े ही शातिर तरीके से अंजाम दिया जाता है। साइबर अपराधी पहले महिलाओं या लड़कियों से दोस्ती बनाते हैं और फिर उन्हें अपना शिकार बनाते हैं। विश्वास में लेकर और लालच के चलते नजदीकियां बढ़ाने के बाद महिला या लड़की के निजी फोटो हासिल कर लेते हैं। इसके बाद पीड़िता से मनचाहे काम करवाने के लिए ब्लैकमेल करते हैं। साइबर बुलिंग का दुष्परिणाम है कि कई मामलों में युवा लड़कियों से रेप हुए हैं, उनका यौन उत्पीड़न हुआ है, वहीं अधिक उम्र वाली महिलाओं को पैसों के लिए ब्लैकमेल किया गया है।

  देश में वर्ष 2011 में कुल 13,301, वर्ष 2012 में 22,060, वर्ष 2013 में 71,780 साइबर अपराध दर्ज किए गए। साल 2014 में साइबर क्राइम की करीब डेढ़ लाख वारदातें होने की बात अध्ययन में सामने आई है । जिसके 2015 में बढक़र लगभग दोगुना हो जाने का अनुमान जताया गया है। यह बात भी सामने आई कि इन्हें अंजाम देने वाले अधिकतर अभियुक्त युवा हैं। जिनकी आयु 18 से 30 साल के बीच है। साइबर क्राइम ब्रांच के मुताबिक पिछले कुछ वर्षो मे इन अपराधों में जमकर बढ़ोतरी हुई है और निशाने पर अक्सर टीन एजर्स रहते हैं।
पिछले दिनों सामने आया स्वाति मर्डर केस साइबर क्राइम का एक सबसे खतरनाक पहलु उजागार करने वाला वाकया रहा. जहाँ दोनों ने एक दूसरे के मोबाइल नंबर फेसबुक के ज़रिये दिए थे. वहीँ रामकुमार ने कई बार सार्वजनिक रूप से स्वाति को प्रपोज़ भी किया था. लुक्स को लेकर हुए भद्दे मजाक और टिपण्णी के रोष में आकर आरोपी ने स्वाति को रेलवे स्टेशन पर ही गला रेतकर हत्या कर दी.

  ये केवल एक घटना है जिसका ज़िक्र हुआ है आये दिन ऐसी वारदातें होती रहती हैं. वहीँ आजकल सोशल मीडिया पर होने वाली बहसें कई बार हदें पार तक कर देती हैं. जिनमें महिलाओं को लेकर कई बार न सिर्फ अभद्र कमेंट किये जाते हैं बल्कि लेख तक लिख दिए जाते हैं. बरखा दत्त, सागरिका घोष, कविता कृष्णन, अलका लम्बा, स्मृति ईरानी, अंगूर लता देका, यशोदा बेन इत्यादि महिलाएं इस अभद्रता की भुक्त भोगी देखी जाती हैं आये दिन. केंद्रीय एवं जनरल वीके सिंह के बयान से चर्चा में आया ‘ प्रैसटीट्यूड’ शब्द का किसी भी महिला पत्रकार के लिए इस्तेमाल आम ही है. सागरिका घोष और उनकी बेटी का बलात्कार करने की धमकी दी गयी. साथ ही पिछले दिनों कंगना रणोत के खिलाफ ट्विटर पर करैक्टरलेस कंगना, फेक फेमिनिज्म जैसे हैशटैग प्रचलन में थे. वहीँ कविता कृष्णन का कहना है कि ‘समाज तो जैसा है वैसा है ही, लेकिन चिंता की बात ये है कि जो राजनीतिक गोलबंदी के तहत हो रहा है उसे आप समाज के कंधे पर नहीं धकेल सकते. अगर ये प्लान के तहत हो रहा है तो उसका आयोजक कौन है? ऐसा करने वालों का आत्मविश्वास यहां से आ रहा है कि प्रियंका चतुर्वेदी को बलात्कार की धमकी मिलती. स्मृति ईरानी को लेकर आये दिन अभद्र टीका टिपण्णी की जाती रही हैं. पिछले दिनों ही सलमान खान के विवादित बयान पर ट्वीट करने पर सोना मोहपात्रा को भी ट्विटर पर काफी गाली – गलौच का सामना करना पड़ा.

   ऐसे में मेनका गाँधी की पहल काफी हद तक सराहनीय है क्योंकि यदि इस प्रकार की संहिता सफल होती है तो काफी हद तक लोगों को काबू किया जा सकता है. लेकिन ये कहाँ तक कारगर साबित होगी अभी कुछ कहा नहीं जा सकता है. क्योंकि इंटरनेट पर सूचनाएं रोकी नहीं जा सकतीं, लेकिन क्या सामाजिक और भाषाई रूप से अभद्र, आक्रामक और महिला विरोधी होते जा रहे समाज पर भी नियंत्रण नामुमकिन है? ये एक बड़ा सवालिया निशान है. क्योंकि साइबर स्पेस में कितने ही फेक एकाउंट्स बने हैं जिन्हें ट्रैक करना बिल्ली के गले में घंटी बाँधने के बराबर है.

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