Sunday 1 June 2014

वो ख़ामोश बदनाम गलियाँ



गर्मियों में मुंबई कि बेस्ट बसों में सफ़र करना कोई बच्चों का खेल नहीं है. इसका दर्द एक वही समझ सकता है जिसने इनमें सफ़र किया हो. रोजाना कि तरफ आज भी सुबह बस से ही ऑफिस आ रही थी. बेस्ट बसों में सीट मिलना राम मिलने के बराबर होता है. वरिष्ठ नागरिक वाली एक सीट खाली हुई तो मैं वहां जाकर बैठ गयी. भीड़ काफी थी लेकिन प्रभा देवी (बस-स्टॉप) पर कुछ लोग उतरे और सभी पुरुष किसी को गरियाते हुए उतर रहे थे..मानों कोई छुआ-छूत कि बीमारी बस में चढ़ गयी हो. “ अरे साइड हो ना ..” “यहाँ क्यों खड़ी हो गयी है..” “ए किसने चढ़ने दिया रे इन को.” मैंने देखने कि कोशिश की ..लेकिन भीड़ होने के कारण देख नहीं सकी. अगले स्टैंड पर भीड़ थोड़ी कम हुई तो देखा कि दो औरतें ड्राईवर के पास खड़ी हुई हैं सांवला सा रंग मैले से सलवार कमीज़ पहने हुए थे जिनके दुपट्टे कतई मिल नहीं रहे थे..जिनमे से एक तो शायद 17-18 साल की थी और दूसरी शायद रही होगी 30-32 साल की और जो गर्भवती भी थी. वो 17-18 साल की लड़की मेरे बराबर आकर बैठ गयी. हाथ में एक पॉलीथिन थी. और मुझसे सीधे ही पुछा “कहाँ उतरेगी दीदी”. मैंने हल्का सा मुस्कुराते हुए कहा कि ‘दूरदर्शन उतरना है.” ये बात पीछे बैठे एक अंकल ने सुनी और उस लड़की पर बड़ी जोर से चिल्लाये..
फोटो सभार - गूगल 
“तेरे को क्या मतलब है?...क्या करेगी?..अपने काम से काम रख बस...चल उठ यहाँ से.”
इतने में वो लड़की फिर बोली “पूछा ही तो है.”
और वो अंकल फिर से चिल्लाये “हाँ..तो क्यों पूछ रही है...चल अब उठ जा इसके बगल से.”
लड़की एकदम चुप हो गयी...और उसने उस गर्भवती औरत कि ओर देखा...औरत ने आँखों से ही इशारा किया मानों कह रही हो “मत बोल कुछ...और उठ ज. ” लड़की चुपचाप कड़ी हो गयी और दूरदर्शन आने से पहले दोनों ने बस वाले से कहा रोकने को ...और उतर गयीं.
मुझे माजरा कुछ समझ नहीं आया. वो अंकल भी वहीँ उतरे और बैग लेकर जल्दी-जल्दी आगे बढ़ गए. मैं भी उतर कर उनके पीछे भागी..और आवाज़ दी. वो रुक कर पलटे और पूछा
“क्या हुआ ?”
“अंकल आपने उस लड़की को ऐसे क्यों डाटा?”
“अरे लगता है तुम्हे समझ नहीं आया शायद ..लेकिन वो लोग यहाँ वरली के रेड-लाइट एरिया की  औरतें थीं...तुम्हे उनसे बात नहीं करनी चाहिए थी.”
और इतना कह कर वो निकल पड़े..मैं सुनकर हक्की-बक्की रह गयी कि उनसे इस तरह का व्यव्हार सिर्फ इसलिए किया जा रहा था क्योंकि वो रेड- लाइट एरिया में रहने वाली औरतें थीं..या फिर क्योंकि वो शहर कि गंदगी साफ़ करने का काम करती हैं इसलिए?”
  आखिर उनका वजूद क्या सिर्फ उन्ही से है..क्या वो खुद से ये सब करना चाहती हैं? क्या इनके बनने में इन पुरुषों का ज़रा भी हाथ नहीं है? जो इन्हें इस तरह से लताड़ रहे हैं और इस तरह से बर्ताव कर रहे हैं मानों इन्हें कुछ पता ही नहीं है और ये समाज कि ऐसी अछूत बीमारी हैं जो बिना छुए ही फ़ैल जाती है.
   वैश्यावृति का इतिहास काफी पुराना है आम्रपाली ..जो कि ‘वैशाली कि नगरवधू’, एक ऐसी वधु जो सम्पूर्ण नगर कि वधु थी... जिसे सदासुहागन भी कहा गया है यानि कि ऐसी सुहागन जिसका सुहाग कभी नहीं मरेगा.’ आचार्य चतुरसेन द्वारा लिखी गयी इस किताब ‘वैशाली की नगरवधु’ उस काल कि काफी बातें उभर का सामने आती हैं. साथ ही भारतीय ‘टेम्पल प्रोस्टिट्यूशन’ का ज़िक्र मिलता है. रम्भा और मेनका को भी एक प्रकार से कहा जा सकता है.
  गोवा में तो पुर्तगालियों ने हज़ारों कि संख्या में कई देशों से लड़कियों का आयात किया और ज़बरन इस काम में घसीटा और बाद में जिसका लुत्फ़ भारतियों ने भी उठाया. ईस्ट इण्डिया कंपनी ने भी लड़कियों का न सिर्फ आयात किया बल्कि निर्यात भी किया . वहीँ दूसरी ओर देखे तो द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान जापान में एक बड़ी संख्या में लड़कियों को ज़बरन वैश्यावृति में धकेला न सिर्फ धकेला बल्कि उनके साथ वीभत्स और अमानवीय व्यवहार भी किया. और ये सब सिर्फ इसीलिए किया ताकि सिपाहियों को इस प्रकार कि सुविधा दी जा सके.
आजादी के उपरांत तो वैश्यावृति कि दुनिया नरकीय जीवन से कम नहीं थी. देखें तो भारत में लगभग 25 लाख महिलाएं वैश्यावृति के दलदल में फंसी हैं और प्रतिदिन लगभग 200 महिलाएं इसमें धकेली जाती हैं. (तहलका (2008)  इनमें लाखों कि संख्या में तो सिर्फ मुंबई में ही हैं. बाल- वैश्यावृति के लिए तो दक्षिण एशिया पहले से ही विख्यात रहा है. ये आंकड़े तो फिर भी काफी पुराने हैं. जिनकी वृद्धि दिन दोगुनी और रात चौगुनी हो रही है.
1956 में भारत सरकार SUPPRESSION OF IMMORAL TRAFFIC 
(SITA) एक्ट लाती है. असल में ये एक्ट इन धंधों को रोकने के लिए लाया गया था जिसमें केवल मनोरंजन, गायिकी और गीतों के लिए लाईसेंस प्रदान किये गए जिसमें देह व्यापार,दलाली और धंधा शामिल नहीं था. इस एक्ट के बाद सरकार एक और एक्ट लेकर आई ITPA (
THE IMMORAL TRAFFIC PREVENTION)  एक्ट.  जिसमें सरकार कि संवेदनशीलता का  परिणाम ये निकला कि एशिया कि सबसे पुरानी वैश्यामंडी ‘सोनागाछी’ को उपहार स्वरुप मिला जहाँ हजारों वैश्याओं का जीवन बीमा करवाया गया. हालाँकि ITPA एक्ट में सेक्स के सार्वजनिक उपयोग को अवैध ठहराया गया. जहाँ ये लागू हुआ कि कॉलगर्ल अपना फ़ोन नंबर सार्वजनिक रूप से डिस्प्ले नहीं कर सकती साथ ही सार्वजनिक स्थान पर 200 गज के भीतर की जाने वाली वैश्यावृति अवैध होगी. 18 वर्ष से कम उम्र कि लड़की के साथ शारीरिक संबधों को अवैध करार दिया गया साथ ही  कोई लड़की या महिला यदि वैश्यावृति से मुक्त होने कि पेशकश करती है तो सरकार पूरी तरह से उसके पुनर्वास की व्यवस्था करेगी अथवा अन्य प्रकार कि आर्थिक सहायता प्रदान करेगी. ऐसे में किसी भी वैश्या के बच्चों को पूरी तरह सामाजिक प्रतिष्ठा, पहचान और शिक्षा के क्षेत्र में सहायता प्रदान करेगी. PITA में इस बात पर जोर दिया गया कि क़ानून सभी वैश्याओं को आत्मविश्वास प्रदान करेगी कि उन्हें भी समाज में जीवन जीने का हक है. हालाँकि ऐसा कुछ हो नहीं पाया. वैशयाओं का जीवन तब भी नर्क था और आज भी नरक है.
दूसरी ओर देखें तो ये बात सरकारी आंकड़ों में भी दर्ज है कि आज भारत में लगभग 9 सौ संगठनों में 5 हज़ार से ज्यादा लोग बच्चों को चुराने के काम में सक्रिय है. साथ ही प्रतिवर्ष 12 - 50 हज़ार बच्चे और महिलाएं लापता होते हैं. केंद्रीय समाज कल्याण बोर्ड की रिपोर्ट के अनुसार देश में लाखों ऐसी वैश्याएँ हैं जिनमें से 15 फीसद 15 वर्ष से भी कम की हैं. लाखों बच्चियों का बचपन इस गंदगी में छटपटा रहा है और एक दिन इसी गंद में अपनी सांसें तोड़ देगा.  
भारतीय सिनेमा ने भी इन वैश्याओं के जीवन पर आधारित कई फिल्में बनायीं जिनमें काफी हद तक ये दर्शाने कि कोशिश कि गयी कि उनका जीवन किस नरक से हो कर गुज़रता है. 2013 में आई रीमा काग्ती कि फिल्म ‘तलाश’ ने कुछ इसी प्रकार के मुद्दों को उजागर करने कि कोशिश कि थी. गुरुदत्त कि प्यासा से लेकर रविन्द्र धर्मराज कि  ‘चक्र’, गुलज़ार द्वारा बनायीं गयी  ‘मौसम’, श्याम बेनेगल कि ‘मंडी’ , सुधीर मिश्रा की ‘चमेली’, मीरा नायर की ‘सलाम बॉम्बे’, चांदनी-बार  दीपा मेहता कि वाटर, मधुर भंडारकर कि ‘ट्रैफिक सिग्नल’ और प्रदीप सरकार कि ‘लागा चुनरी में दाग’. सभी फिल्मों में वैश्यावृति के किसी न किसी पहलु को दर्शाने कोशिश कि है.
अब ऐसे में मुंबई का कमाठीपुरा, दिल्ली का जीबी रोड, पुणे का बुधवार पैठ, वाराणसी कि कुदालमंडी, भुवनेश्वर का मालिस आँध्रप्रदेश का पद्देपुरम, ग्वालियर का रेशमपुरा, भागलपुर का जोगसर, गुजरात का बनासकांठा और पशिम बंगाल का सोनागाची. ऐसी अँधेरी और बदनाम गलियों का आज भी जीवंत होना इन SITA और PITA जैसे अधिनियमों की चीथड़े उड़ाती हुई नज़र आती हैं. हमेशा कि तरह अधिनियम तो बन जाते हैं लेकिन उन अधिनियमों का पालन और ठीक प्रकार से सञ्चालन कभी नहीं हो पाया है. पिछले दिनों बड़ी कवायद चली थी कि वैश्यावृति को वैध ठहराया जाये. आज भी इसी बात पर काफी बहस चल रही है. लेकिन हल अभी तक कुछ निकल नहीं पाया है. हालंकि कुछेक गैरसरकारी संगठन (प्रज्वला,रेड क्रॉस,पर्याय इत्यादि) क्षेत्र में निस्वार्थ भाव से काम भी कर रहे हैं. लेकिन वो सब केवल समुन्दर में ओस कि बूँद के जितना ही काम कर पाते है. 

समय के साथ-साथ इस नरक में रहने वाली औरतों के नाम बदल जाते हैं. कभी तवायफ़, कभी वैश्या कभी कॉल-गर्ल, कभी सेक्स-वर्कर और कभी कम्फर्ट गर्ल. लेकिन उनके बाद उनके होने वाले बच्चों को जिस प्रकार कि दुनिया का सामना करना पड़ता है जो मानवीय नहीं होता है उन्हें शिक्षा तो दूर कि बात पहचान तक नहीं मिल पाती है. ऐसे में उन बच्चों का क्या कुसूर होता है. वो कितनी ही कोशिश क्यों न कर लें. एक अच्छा और स्वस्थ भविष्य वो चाह कर भी नहीं दे पाती हैं. ऐसे में सरकार को सबसे पहला काम तो इन बच्चों को पूरी तरह से सम्मानजनक जीवन देने का काम करना चाहिए. और साथ ही इनके पुनर्वास के क्षेत्र में कदम उठाने चाहिए.

5 comments:

Unknown said...

iss mamle m maardo ki soch m badlao ki jaroorat aham hai. tavi kuchh ho sakata hai,
kanun ko v majbokot kkarana hoaga, isake sath ise prabhavi tarike se lagu karane ki v jaroorat hai... aur aakhir me hm ise manawata aur NGO k bharose nahi chhor sakate.... wo kv ek dhandha ban kar rah gaya hai, aapne data kaha se liya hai ye deti to achha rahata. matalab kaha ka sarkaari aakra hail

Dolly Bansiwar said...

डाटा के लिए कुछ लिंक हैं यहाँ !

AMIT KUMAR'MEET' said...

प्रिय डॉली,

तुम्हारे लेखन की मैं प्रशंसा करता हूूँ। परंतु तुमने इसे सुना सुनाया लिखा। अगर तुम स्वंय इसे अनुभव करके लिखती तो बेहतर होता। सबसे पहले मैं तुम्हें ये बता दूं कि अधिकतर यौनकर्मियाँ इस जीवन को नारकीय नही मानती। वो इसे अन्य कार्य की तरह की मान्यता देती हैं। इतना ही नही, यौनकर्मियाँ अपने बच्चों को बेहतर शिक्षा देने के लिए भी प्रतिबद्ध हैं। जिस ITPA की बात तुम कर रही हो, उसने यौनकर्मियों के दिलों में भय ही कायम किया है। उसके सेक्शन 4 के तहत यौनकर्मियों के बच्चे तक अपराधी बन जाते हैं। पुलिसिया रेड की आड़ में जो अमानवीय कृत्य होता है उसे भी समझने की आवश्यकता है। हमारे देश में प्रत्येक नागरिक को अपना कार्य चुनने का अधिकार है और हमारे देश में यौनकार्य बेशक अनैतिक हो लेकिन आपराधिक नही है। लिहाज़ा अगर ये आपराधिक नही है तो इसे स्वेच्छा से चुना जा सकता है। परिस्थितियों पर विचार होना चाहिए कि ये महिलाएं यहाँ आती क्यों हैं। सारी महिलाएं ट्रैफिकिंग के माध्यम से नही आती। और हाँ आंकडे सच्चाई से कोसों दूर हैं। सरकार द्वारा चलाए जाने वाले पुनर्वास स्किमों की आड़ में शोषण की पराकाष्ठा देखने को मिलती है। मंत्रालय की वेबसाइट पर जाकर देखो कि किस प्रदेश में कितने Reheb Centers हैं। सच्चाई अपना परिचय स्वयं देगी। अगर और ज्यादा जानकारी चाहिए या मौलिक लेखन को मान्यता देती हो तो मुझसे संपर्क करना। और हाँ लिखती रहो। साधुवाद।

तुम्हारा शुभचिंतक और भाई
अमित कुमार

idharsedekho said...

aapka lekh janasata me padha bahut hi achcha he

Dolly Bansiwar said...

बेहद शुक्रिया :)