Monday 2 April 2012

सबसे शातिर कुरीति

हाल ही में एक समाचार पत्र में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार भरतपुर जिले में शादी के कार्डों पर  दूल्हा और दुल्हन की जन्मतिथि  का होना  अनिवार्य हो चुका है. भरतपुर के डिस्ट्रिक्ट  कलेक्टर गौरव गोयल के निर्देशानुसार ये फरमान जारी किया गया है. जिलाधिकारी ने ये कदम बाल विवाह जैसी कुरीतियों के खिलाफ उठाया है.
  बाल विवाह जैसी कुरीतियाँ समाज में न सिर्फ दाग है अपितु ये उन नन्हे और कोमल मानों पर कुठाराघात  भी है. जो इन कुरीतियों के चलते इनके दोहरे पाटों के बीच अपने जीवन को पिसवा देते हैं. भरतपुर जैसे छोटे शहर में इस प्रकार की पहल किसी बड़े आन्दोलन से कम नहीं साबित होगी .लेकिन यदि एक सरसरी नज़र से देखा जाये तो हम पते हैं की बाल विवाह शायद एक ऐसा अपराध है जो होने से पहले तो अवैध है लेकिन पूरा होते ही वैध हो जाता है. बाल विवाह  निरोधक अधिनियम `१९२९ में के तहत  बाल विवाह करना एक दंडनीय अपराध  ज़रूर है लेकिन हो चुका विवाह अपने आप में अवैध या गैर कानूनी नहीं है. कानून ने ये व्यवस्था ज़रूर कर दी है की  विवाह के लिए लड़की की उम्र अट्ठारह और लड़के की उम्र  इक्कीस होना अनिवार्य है . लेकिन  किसी किसी भी प्रावधान के तहत इस आधार पर विवाह को गैर कानूनी या रद्द नहीं माना  जायेगा. साफ़ शब्दों में कहे तो ये उसी ढोल की पोल है जो  भारत में पिछले आठ दशकों से बजाया जा रहा है.
      
      बाल विवाह को रुकवाने के लिए समाज के सजग पहरेदारों ने  2006 में एक और विधेयक पास किया था जिसमे घर वालों के साथ-साथ उन रिश्तेदारों को भी दण्डित किया जायेगा जो बाल विवाह में सम्मिलित होंगे या साक्षी होंगे. जब ये विधेयक आया तो लगा था की शायद इस क्षेत्र में शायद कुछ बड़ा कदम उठ पायेगा  . लेकिन परिणाम वही ढाक के तीन पात रहा . बाल विवाह में न तो कोई कमी देखि गयी और न ही कोई खास बदलाव देखे गए . यानि की ये कदम भी कोई कारगर बदलाव लाने में सक्षम साबित नहीं हो सका.आज  भी अक्षय तृतीय पर हर साल कई राज्यों में सामूहिक बाल विवाह होते हैं. खुलेआम. कुछ रीती-रिवाजों और मंत्रोच्चार मिलकर दो  मासूम बच्चों की जिंदगियां बदल डालते हैं या यों कहें की उन दो बच्चों की जिंदगी को नरक बना डालते हैं . उस समय ये समझ नहीं आता की क़ानून के लम्बे  हाथ क्यों छोटे पद जाते हैं उन कुकर्मियों तक पहुँचने के लिए की उस गैर संवेधानिक काम को अवैध ठहराने के लिए. 
    
'     देखा जाये तो बाल विवाह अपने दौर की कुरीतियों में सबसे शक्तिशाली और शातिर निकला है .जिसे आज  तक मात नहीं दी जा सकी है.  जहाँ एक और ये कुछ  समाज सुधार आन्दोलन एक साथ शुरू किये गए  जिनमे  बालिका अशिक्षा, सटी प्रथा , बेमेल विवाह, पर्दा प्रथा , विधवा उत्पीडन  जैसी कुरीतियाँ अपने पतन की और बढती दिखाई देती हैं  वही दूसरी ओर बाल विवाह हर साल अपना ताम झाम लेकर एक और नवीनीकरण की और बढ़ता दिखाई देने लगता है.
     
          राष्ट्रीय परिवार स्वस्थ्य सर्वेक्षण-३ के अनुसार देश में तकरीबन पचास फीसदी लड़कियों  की शादी अट्ठारह वर्ष से पहले ही हो जाती है. उत्तर प्रदेश में ५९ फीसदी लड़किओं की शादी बालिग़ होने से पहले ही हो जाती है. समझ नहीं आता की इस प्रकार की कुरीतियों को समर्थित कौन करता है ?....आम तौर पर देखने को मिलता है की राजनितिक दल और नेताओं का रवैया बाल विवाह के प्रति बहुत ही साफ़ है . बाल विवाह के विरोध का तो सवाल ही  पैदा नहीं होता है. उलटे ही एम् एल ए, एम्.पी, विधायक, पार्षद  जैसे लोग बाल विवाह जैसे समारोहों में शिरकत करते नज़र आने लगते हैं.  इसका साफ़ साफ़ मतलब ये निकलता है की नेता ये सन्देश देना चाहते हैं की जनता के तमाम फैसलों  में  वे जनता के साथ हैं. फिर चाहे वे फैसले भले हों या बुरे  उस से उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता है, उनकी मंशा सिर्फ और सिर्फ ये होती है की वक़्त आने पर वे अपने वोट बैंक में कमी ना पायें . 


    आज के समय में बाल विवाह जैसी कुरीतियों को कम करने के लिए जनजागरण सबसे कारगर हथियार है , आखिर कब तक बाल विबाह को माता-पिता गुड्डे गुड्डी का खेल मान कर बच्चों की जिंदगियों के साथ खेलते रहेंगे.  ऐसे में एक छोटी सी पहल यदि एक बड़े लक्ष्य तक पहुँचने में कारगर साबित होती है तो शायद इतिहास में ये सबसे सरह्निये प्रयास रहेगा .


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