Thursday 23 April 2015

ये वाकई आत्महत्या है !!

गजेन्द्र सिंह ने खुदखुशी कर ली है तो देख रहे हैं राजनीति में गर्मजोशी ज़ोरों पर है. जो लोग महीनों से चुप लगा के बैठे थे उनके भी मुंह खुल रहे हैं. सब के सब अपनी-अपनी पीठ बचाते हुए नज़र आ रहे हैं. और आदरणीय / माननीय मुख्यमंत्री चुपचाप बैठे हैं. ज़ाहिर है की “bagger can’t be a chooser”   बोलेंगे भी क्या सब कुछ तो तभी बोल दिया जब गजेन्द्र अपनी जान दे रहा था. शायद कहीं शर्म के मारे छुप गए हों. लेकिन शर्म भी तो कब की बह चुकी है महोदय की आँखों से. ऊपर से महान पार्टी के प्रवक्ता ‘आशुतोष’ जी का कहना है की गलती दिल्ली पुलिस की है इस से बड़ा कर्तव्य विमुखता का प्रमाण नहीं हो सकता..आत्महत्या मीडिया के सामने हुई है  . क्योंकि किसी की भी जान को बचाना या आत्महत्या करने से रोकने का काम माननीय मुख्यमंत्री जी का नहीं था. ये बात भी सही है कि उनका काम होता है अगर कोई व्यक्ति उनके सामने जान दे रहा है तो भाषण को लगातार चालू रखें और देखें की ये वाकई में मरेगा या नाटक कर रहा है. खैर इसके बात प्रभु कह रहे हैं की यदि अगली बार ऐसा होगा तो मैं दिल्ली के मुख्यमत्री जी कहूँगा की वे खुद पेड़ पर चढ़ेंखुद पेड़ की शाखाओं पर जाएँ और उस आदमी ऐसा करने से रोकें मतलब आगे भी माननीय  महोदय की रैलियों में ऐसी आत्महत्याओं का सिलसिला जारी रहने वाला है. कुछ प्रेस्टीटयूट गजेन्द्र की लिखी आखिरी चिट्ठी को दिखा कर जताना चाहते हैं की वो एक आत्महत्या है. अब सवाल ये उठता है की क्या उस चिट्ठी में कहीं भी आत्महत्या का ज़िक्र था? बेशक कहीं नहीं था उस चिट्ठी में कहीं भी नहीं लिखा था की वो आत्महत्या करने जा रहा है. चिट्ठी में उसने ज़िक्र किया है की उसकी फसल खराब हो गयी है जिसकी वजह से वो घर नहीं जा पा रहा. लेकिन क्या इस आत्महत्या की वजह सिर्फ उसकी फसल ख़राब हो जाना थी? वो किसान था ऐसे में उसकी फसल पहली बार तो ख़राब हुई नहीं होगी बारिश के चलते ? उसके घर परिवार को देखें तो उसके घर के हालात इतने भी ख़राब भी नहीं थे की फसल के चलते उसे आत्महत्या करने की ज़रुरत पड़ती. गजेन्द्र राजस्थान के दौसा जिले के एक अच्छे खासे घर से ताल्लुक रखता है बल्कि उसकी एक अच्छी खासी राजनीतिक पृष्ठभूमि भी रही है. उसके ताऊ सरपंच रह चुके हैं साथ ही साथ गजेन्द्र सिंह खुद समाजवादी पार्टी का जिला अध्यक्ष रह चुका है साथ ही एक बार विधान सभा चुनाव तक लड़ा है. उसका अच्छा खासा सफा का व्यापर भी था. एक मिनट में 7 साफे बाँधने का रिकॉर्ड तक रह चुका है. ऐसे में अचानक भरे चौक में आत्महत्या कहीं से भी वाजिब नहीं लग रही है, क्योंकि देखा जाये तो गजेन्द्र सिंह 19  अप्रैल को कांग्रेस की रैली मैं भी शामिल हुआ था. तो अचानक आप की रैली में आत्महत्या का मन कहाँ से बना डाला ? या ये कहें की आप की रैली में उसे आत्महत्या के लिए उकसाया गया था? खैर इस आंच पर राजनीतिक रोटियां भी सिकना भी शुरू हो चुकी हैं ऐसे में सवाल बहुतेरे हैं लेकिन गजेन्द्र ने दिल्ली की व्यवस्था को जाते-जाते जो नाक चिढाई है उसके बाद भी अगर पार्टी वाले नाक ऊँची करके बोल रहे हैं तो लानत है वाकई में !
 
photo : PTI


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