Monday 23 October 2017

दंगल का चीन में मंगल



फिल्म दंगल कुछ वक्त पहले चीन में रिलीज़ हुई और फिल्म को मिली दर्शकों की प्रतिक्रिया वाकई आश्चर्यजनक थी. दंगल चीन में 'शुए जिआओ बाबा' के टाइटल से रिलीज़ हुई थी , जिसका हिंदी में अनुवाद है 'आओ बाबा कुश्ती लड़ें।' और सबसे आश्चर्यजनक बात यह है कि चीन में इस फिल्म ने तकरीबन 700 करोड़ की कमाई का आंकड़ा पार किया । 'दंगल' पहली भारतीय फिल्म रही, जिसे चीन में सबसे ज्यादा स्क्रीन्स मिले . दंगल चीन में तकरीबन 9000 स्क्रीन पर रिलीज़ हुई . यदि चीन में हुई इस कलेक्शन को वर्ल्ड कलेक्शन से मिला दें फिल्म तकरीबन 1500 करोड़ रुपये के कमाई के आंकड़ों को पार कर चुकी है. वैसे हाल ही में दुनिया भर में ख्याति बटोरने वाली राजामौली की फिल्म ‘बाहुबली-2' ने भी इस आंकड़े को पार कर लिया था. गौरतलब है कि दंगल चीन में सबसे ज्यादा कमाई करने वाली नॉन-हॉलीवुड फिल्म बन कर उभरी. 


अब ध्यान देने वाली बात ये है कि साधारण सी दिखने वाली फिल्म में चीन को ऐसा क्या भाया जिसे इतनी सराहना मिली. फिल्म में न तो कोई चमक-धमक है, न ही फिल्म में मदहोश कर देने वाले गीत और न ही ऐसा कोई संगीत. जिसे आज के पॉपुलर कल्चर में हाथों हाथ लिया जाए. एक सफ़ेद दाढ़ी में दिखने वाला एक बाप जो अपनी बेटियों के भविष्य को सुधारने के लिए समाज से भिड़ जाता है, साथ ही दंगल में तकनीक का नाममात्र इस्तेमाल किया गया था , जिसमें गांव-देहात की जीवनचर्या को दिखाया गया. और दरअसल यही बात चीन के दर्शकों को फिल्म के बारे में सबसे अच्छी लगी. क्योंकि फिल्म न सिर्फ भवनात्मक रूप से जोडती है, बल्कि सामाजिक रूप से भी चीन के दर्शक को आत्मसात करती है. देखा जाये तो चीन में महिला संबंधी मुद्दों पर बनने वाली फिल्में अधिक पसंद की जाती हैं. फिल्म में दर्शकों ने गीता-बबीता और महावीर के संघर्ष को खुद को चीन क्रांति से की सामाजिक व्यवस्था से जोड़कर देखा और कहीं न कहीं खुद को भी वहीँ पाया . गौरतलब है कि चीन की क्रांति से पहले चीन में भी महिलाओं की स्थिति बहुत दयनीय थी. उन्हें न सिर्फ घर की एक शोभावस्तु माना जाता था बल्कि आगे बढ़ने से हमेशा घर और समाज से लड़ना पड़ता था. लेकिन अपने संघर्ष के बल पर आज चीनी महिलाएं न सिर्फ देश के आर्थिक निर्माण में बड़ी भूमिका अदा कर रही हैं, बल्कि अब पूरे चीन के मजदूरों व कर्मचारियों का लगभग आधा भाग महिलाएं हैं . इस से जाहिर है कि चीन में महिलाओं को पुरूषों के समान रोजगार का मौका मिला तो है लेकिन एक लम्बे संघर्ष के बाद और आज उनकी आर्थिक स्थिति भी उन्नत हुई है. ग्रामीण क्षेत्रों में उद्यमों की संख्या बढ़ने के साथ-साथ बहुत सी महिला किसान मजदूरों के पांत में शामिल हुई और वे ग्रामीण विकास को बढावा देने की मुख्य शक्ति बनी । और यही संघर्ष हम फिल्म के मुख्य किरदारों की ज़िन्दगी में भी देख सकते हैं . और शायद यही वजह चीनी लोगों को इस फिल्म से गहराई से जोड़ने में कामयाब हुई .


फिल्म के ज़रिये लेखक ने ऐसे कई मुद्दों को छूने की कोशिश की है जिसे देख कर कोई भी दर्शक भावुक हो उठता है. और ये मुद्दे न सिर्फ एक पटकथा का एक अंश हैं बल्कि भारतीय समाज का एक हिस्सा हैं. फिर चाहे वो सांस्कृतिक हो, आर्थिक हो या सामाजिक हो. और सबसे बड़ी बात ये भी है कि एशियाई देशों की बहुत सी बातें मिलती जुलती भी हैं. उदाहरणस्वरुप; बच्चों की सफलताओं से अभिभावकों की उम्मीदें और आशाएं.


फिल्म लेखक अंजुम राजबाली के अनुसार “हिंदी सिनेमा के हीरो का किरदार अब और जटिल हो रहा है पहले एक्शन फ़िल्मों में बदले की भावना पर अनगिनत फ़िल्में बनीं. 'दीवार' में नायक का गुस्सा उसका दुश्मन है, लेकिन अंत में मदनपुरी की मौत तो तय थी. 'शोले' में भी ठाकुर के व्यक्तिगत बदले के बल पर ही कहानी और किरदार बनते मिटते हैं .. पुरानी फिल्मों में जो ताकत नायक के विरोध में खड़ी हुआ करती थी जिसे हम खलनायक के रूप में देखा करते थे, लेकिन अब ये खूबी या खामी खुद हीरो के अंदर ही होती है. नायक के किरदार की अपनी एक जर्नी होती है, आज का नायक कुछ साबित करना चाहता है जो खुद के लिए ज़रूरी है. कभी वह अपने गिल्ट से मुक्ति चाहता है तो कभी उसकी नाकामी ही उसे सब बदल देने की प्रेरणा देती है."


वहीँ दूसरी ओर देखा जाये तो आमिर खान की लोकप्रियता चीन के युवाओं में अच्छी खासी है और कहीं न कहीं फिल्म के सफल होने में ये भी एक महत्वपूर्ण कारक रहा. क्योंकि इस से पहले थ्री-इडियट्स ने आमिर खान को चीन में बुलंदियों पर पहुंचा दिया था. जो नौजवानों में काफी लोकप्रिय सिद्ध साबित हुई थी. फिल्म को थिएटरों से ज्यादा ऑनलाइन देखा गया और सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि फिल्म चीन की 12वीं सबसे पसंदीदा फिल्मों की फेहरिस्त में शामिल हो गयी थी. इसके बाद ही धूम-3 ने 2000 स्क्रीनों पर कब्ज़ा कर लगभग 3.8 मिलयन डॉलर का बिज़नेस किया. इसके बाद PK को तकरीबन 4600 स्क्रीन से ज्यादा पर रिलीज़ किया गया और फिल्म ने फिर से तकरीबन 1200 करोड रुपये कमाए और ये कोई आम बात नहीं हिंदी सिनेमा के लिये.


फिल्म समीक्षक रॉब केन का मानना है कि “आमिर की फिल्में चीनी लोगों से सीधा संवाद करती हुई नज़र आती हैं. जो न चीन की अपनी फ़िल्में कर पाती हैं और न ही हॉलीवुड की फिल्में.”


आमिर खान की ये बात भी सराहनीय है कि उनकी हर फिल्म का चयन वाकई बहुत उम्दा होता है. साल में एक फिल्म और बेहतरीन फिल्म देने के कारण उनकी फिल्में कहीं न कहीं भारतीय समाज की बुराइयों और परेशानियों को बेबाकी से पेश करते हैं. चीनी लोग इनके जरिए अपने समाज की झलक भी पाते हैं.


हम पाते हैं दंगल ने न सिर्फ सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक रूप से अपनी छाप चीन पर नहीं छोड़ी है बल्कि राजनैतिक रूप से भी दंगल काफी सशक्त रूप से उभर कर आई है. जिसका जीता जागता सबूत है कम्युनिस्ट पार्टी के पोलित ब्यूरो स्थाई समिति के सदस्य लियू युनशान का कहना कि 'दंगल' हाल ही में चीन में प्रदर्शित सबसे सफल और प्रभावशाली फिल्मों में से एक है. भारत और उसके मीडिया को फिल्म की उपलब्धियों पर गर्व होना चाहिए. यह ब्रिक्स देशों के बीच सहयोग का एक बड़ा उदाहरण है. हमें और मीडिया के लोगों को इस फिल्म को अधिक कवरेज देना चाहिए.


इसके साथ ही फिल्म 'दंगल' की तारीफ चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से कर चुके थे कि उन्होंने आमिर खान अभिनीत फिल्म 'दंगल' देखी और उन्हें यह पसंद आई.


भारत और चीन के बीच अनेक मतभेद होने के बावजूद आज यदि दोनों देशों के दर्शक सिनेमा केभारतीय ज़रिये करीब आ रहे हैं तो ये भारतीय सिनेमा के लिये एक बहुत बड़ी उपलब्धि की बात है. चीन के लोगों का रंग, परिधान, भाषा, परिवेश आदि अलग होने के बावजूद भावनाएं काफी कुछ मिलती जुलती हैं इस बात को चीन में दंगल की सफलता ने साबित कर दिया है .








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