Sunday 6 October 2013

तकनीकी प्रेम : वर्चुअल प्रेम या उस से ज्यादा !!



पिछले दिनों मेरी एक दोस्त ने अपनी एक पोस्ट पर 'वर्चुअल फ़्लर्टका ज़िक्र किया. सोचा ज़रा
जानकारी बटोरी जाये..कि आखिर ये बला है क्या...जब थोडा खोज बीन शुरू की तो पता चला की काफी तकनीकी सुविधाएँ मिल गयीं हैं आज कल. फेसबुक पर प्रेम होनाप्रोपोज करना..इत्यादि अब बीते दिनों की बात हो चली हैं. अब वक्त आगे निकल चुका है, प्रेम करने के नए साधन उपलब्ध हो चुके हैं साइबर की दुनिया में. हजारों साइट्स विशेषतः युवा प्रेमियों के लिए बना दी गयी हैंजहाँ वे अपने लिए प्रेमी -प्रेमिका ढूंढ सकते हैंवो भी अभासिक दुनिया में.

इन साइट्स पर लोग अडल्ट चैट कर सकते हैंवो भी थ्री-डी अवतार में. साथ ही गर्लफ्रेंड या फिर बॉयफ्रेंड भी बना सकते हैं. किस कर सकते हैंगले मिल सकते हैं अपने वर्चुअल पार्टनर से. यानी की अब बिना बात की खिट-खिट पलने की ज़रूरत नहीं है. और ना ही गर्लफ्रेंड आपकी जेब ढीली करवाएगी. 

भूमंडलीकरण और तकनीक की साइबर दुनिया जहाँ आपको आनंत सम्भावनाएं देती है वहीँ दूसरी ओर सबसे ज्यादा हानिकारक भी यही दुनिया बनती जा रही है आज की जीवन शैली में. आज न सिर्फ फेसबुकिया प्रेम परवान चढ़ रहा हैबल्कि इस प्रकार की साइट्स युवाओं के दिमाग में घर करती जा रही हैं. आज वर्चुअल इतना ज्यादा दिमागों में घर कर चुकी है की वो आभासी ना लग कर वस्तिकता के करीब पहुँचती जा रही है. मनोवैज्ञानिकों का कहना कि प्रत्येक व्यक्ति के अचेतन में स्वयं को अभिव्यक्त करने और दूसरों से कनेक्ट करने की प्रबल इच्छा होती है। वास्तविक दुनिया में हर किसी के लिए खुद को इस तरह अभिव्यक्त करना संभव नहीं होता है। वर्चुअल दुनिया में यह बेहद आसान है क्योंकि इसमें दूसरी तरफ कोई आपको सुन रहा है या नहींयह साफ नहीं है। ऐसे में बात केवल चैटिंग तक सीमित नहीं रह गयी है. इस दुनिया ने अपने पैर कुछ इस प्रकार पसारे हैं की ..लोगों के घरों में अपनी अच्छी खासी पैठ तक बना डाली है. इस वर्चुअल दुनिया की सबसे महत्त्वपूर्ण बात ये है की ये सामूहिक व मानवीय संवेदनाओं के पक्ष को गायब करके निहायत काल्पनिकस्वकेंद्रित व रोमाचक उत्तेजना देने वाले पक्ष को प्रभावी बना देते और पूरी तरह से खुद पर निर्भर कर लेते हैं.
वहीँ दूसरी ओर देखा जाये तो अनगिनत संख्या में एडल्ट साइट्स मौजूद हैं. केवल युवा ही नहीं शादीशुदा लोग भी इन साइट्स पर अपना अधिकतर समय बिताते हैं. जो सामाजिक रिश्तों को तोड़ने की भूमिका बखूबी रूप से निभा रही हैं. जिस से दिमाग में एक डर हमेशा रहता है और कारण स्वरुप लोग अवसादी होते नज़र आते हैं.....ऐसे में ये साइट्स किस प्रकार हानि पहुंचा रही हैं और किस तरह से लोगों को वास्तविक दुनिया से काट रही हैं ये सोचने योग्य मुख्य बिंदु हैं.

1 comment:

Darshan jangra said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति.. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा - सोमवार - 07/10/2013 को
अब देश में न आना तुम गाधी
- हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः31
पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया पधारें, सादर .... Darshan jangra