Sunday 28 February 2016

फिल्म अलीगढ़ -भावनात्मक एंड अनकंट्रोलेबल अर्ज’...




“मेरे खिलाफ साजिश थी.”

“आप ‘GAY’ हैं इसीलिए ?”

“कोई मेरी फीलिंग को तीन अक्षरों में कैसे समझ सकता है? फीलिंग एक कविता की तरह ‘भावात्मक एंड अनकंट्रोलेबल अर्ज’...”

अलीगढ़ फिल्म को इन तीन संवादों के ज़रिये बखूबी समझा जा सकता है. हंसल मेहता ने परदे पर एक फिल्म को नहीं बल्कि व्यक्तिगत वेदनाओं और संवेदनाओं को उतारा है. फिल्म के हर शॉट्स के ज़रिये खूबसूरती व्यक्तिगत भावनाओं को पिरोया है. वे भावनाएं जहाँ कोई आदमी-औरत नहीं है बल्कि ‘इंसान’ की हैं, और हर इंसान को अपना प्यार ‘कहाँ’ और ‘किसमें’ मिलता है ये तय करने का पूरा-पूरा हक है उसे. फिल्म का पहला सीन जहाँ सर्द रात के धुंधलके में प्रोफ़ेसर सिरास रिक्शे पर लता मंगेशकर का गीत गुनगुनाते हुए आ रहे हैं. देखने से ही पता चलता है की एक व्यक्ति अपने अकेलेपन में भी खुशमिजाजी और प्यार ढूँढने की कोशिश कर रहा है. वह उसी रिक्शेवाले के साथ शारीरिक संबंध बनाता  हैं, यहाँ फीलिंग ‘अमीर-गरीब, मर्द – औरत की नहीं हैं,  लेकिन वहीँ उसकी निजता में किस तरह ख़लल दी जाती है और साथ ही उसी निजता को दुनिया के सामने नंगा किया जाता है. AMU में बतौर मराठी भाषा के प्रोफेसर के पद पर कार्यरत प्रो. श्रीनिवास रामचंद्र सिरास किस प्रकार अंदरूनी राजनीती के शिकार होते हैं; को दर्शाती बेहतरीन बायोग्रफिकल फिम है. प्रो. सिरास को साल 2002  में उनकी लिखी मराठी बुक 'पाया खालची हिरावयी' के लिए महाराष्ट्र साहित्य परिषद अवॉर्ड भी मिला था.

यहाँ बात समलैंगिक संबंधों की नहीं है. यहाँ बात है किसी भी व्यक्ति के व्यक्तिगत जीवन की. 2 जुलाई 2009 को दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा वयस्कों द्वारा आपसी रजामंदी से स्‍थापित किए जाने वाले यौन संबंधों के संदर्भ में धारा 377 को असंवैधानिक घोषित कर दिया। लेकिन भारतीय समाज की जटिलताओं और परिवेश को ध्यान में रखते हुए समलैंगिकता को जायज ठहराने वाले दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले को अवैध ठहराते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 11 दिसंबर 2013 को कहा कि आइपीसी की धारा 377 को हटाने का अधिकार संसद के पास है और जब तक यह लागू है तब तक इसे अवैध नहीं ठहराया जा सकता है।

अगर बात की जाए समलैंगिकता की तो ऐसा नहीं है की ये आज बात है. किसी भी समझ को उठा कर  देख लें, ये आदिकाल से चली आ रही है. हो सकता है की ये एक जटिल मानवीय रिश्ता हो, लेकिन केवल शारीरिक संबंध नहीं होता है ये उतना ही मानसिक होता है जितना एक सामान्य स्त्री-पुरुष के बीच का संबंध.

समलैंगिक संबंधों को ख़ारिज करने के मामले में अक्सर नैतिकता की दुहाई दी जाती है. लेकिन ये बात भी सच है कि नैतिकता की परिभाषा हर किसी के लिए अलग है...अगर ऐसा ही है तो नैतिकता की संवैधानिक परिसीमा बना देनी चाहिए. ताकि हर किसी के लिए नैतिकता की एक ही परिभाषा रहे. लेकिन बात फिर वही उठती है की क्या नैतिकता की परिसीमा  ‘मानवीय संवेदनाओं को रोक पायेगी?’  .. जवाब है ‘नहीं.’

फिल्म में जहाँ इतने संवेदनशील पहलु को उठाया है उतनी ही चतुराई से शैक्षिक संस्थानों में होने वाली राजनीति को भी उठाया है. इसमें कोई दो राय नहीं है कि लोग अपने फायदे के लिए दूसरों की कोई परवाह नहीं करते फिर चाहे वो कोई ‘स्टूडेंट’ हो या सहकर्मी ‘प्रोफेसर’. ओछी  राजनीति हर जगह अपने पैर पसार रही है. हम बीज बो रहे हैं वह एक घने वृक्ष के रूप में फैलेगा और उसकी शाखें देश के विभिन्न क्षेत्रों में फैल जायेंगी। यह कॉलेज विश्वविद्यालय का स्वरूप धारण करेगा और इसके छात्र सहिष्णुता, आपसी प्रेम व सद्भाव और ज्ञान के सन्देश को जन-जन तक पहुँचायेंगे।"-  सर सैयद अहमद ख़ाँ .  18 77  में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की स्थापना भारत के स्वाधीनता संग्राम के दौरान राष्ट्रीय भावनाओं को मज़बूत आधार एवं स्वदेशी शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए सर सैयद अहमद ख़ाँ ने की थी. लेकिन आज ये विश्वविधालय अक्सर विवादों  से घिरा नज़र आता है.

फिल्म ‘शाहिद’ और ‘सिटीलाइट” के बाद से ही मैं कायल हो गयी थी की जिस तरह आपने फैक्ट्स को एक फिल्म में पिरोया है संवेदनाओं के साथ, शायद वो कोई और न कर पाता. स्क्रिप्ट में अपूर्वा असरानी ने बेतरीन पकड़ बनाये रखी है. मनोज वाजपयी जो प्रोफ़ेसर सिरास के किरदार में नज़र आये हैं उनकी जितनी तारीफ की जाये उतनी कम है. फिल्म में उनकी नम आखें कितनी बार दर्शकों की आँखों को ही नम कर गयी. वहीँ राजकुमार राव जो की एक युवा पत्रकार दीपू के रूप में नज़र आये हैं ने पत्रकारों के मर्म और वेदना  को बखूबी सामने रखा है.

फिल्म के अन्त में तथा केस जीतने के बाद और आत्महत्या करने से पहले प्रोफ़ेसर का एक संवाद है “सोच रहा हूँ ... अमेरिका चला जाऊं..वहां मेरे जैसे लोग इज्ज़त से रह सकते हैं” , जो दोगले भारतीय समाज को उसका आइना दिखाता है.

फिल्म एक बार ज़रूर देखने जाइएगा...और दिमाग से नहीं दिल से देखिएगा...आपको वाकई पसंद आयेगी.

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