Friday 1 April 2016

आत्महत्या, टीवी इंडस्ट्री और एक्टर : परदे के पीछे की कड़वी हकीकत

एक अप्रैल था आज कुछ देर पहले ही एक करीबी मित्र ने बेहद दु:खद खबर दी कि प्रत्यूषा बनर्जी  ने आत्महत्या कर ली है. आज एक अप्रैल है सुबह से न जाने कितनी ही फर्जी कहानियां सोशल मीडिया पर दौड़ रही थी; लगा शायद उन्ही में से एक होगी. लेकिन कुछ देर में टीवी और सोशल मीडिया पर खबर वायरल हो गयी और कुछ
कहते सुनते न बना.

पिछले सितम्बर एक सेट पर प्रत्यूषा  से मुलाकात हुई थी एक इवेंट में शूट के दौरान. काफी मृदुल भाषी, हंसमुख लड़की थी. क्या जानकारी थी आज ऐसी ह्रदय विदारक खबर देकर चली जाएगी. धारावाहिक ‘बालिका वधु’ में आनंदी का बेहद सशक्त किरदार निभा चुकी लड़की जो हर समय नारी-सशक्तिकरण की बात किया करती हुई छोटे परदे पर नज़र आती थी. आज खुद इतनी नि:शक्त हो गयी की ऐसा कदम उठा लेने पर मजबूर हो जाएगी. जानने में आ रहा है बॉयफ्रेंड (राहुल राज सिंह) से हुई अनबन के चलते प्रत्यूषा ने घर के सीलिंग फेन से लटककर आत्महत्या कर ली. फिलहाल प्रत्यूषा के परिजनों पर इस वक्त क्या बीत रही होगी इसका मात्र अंदाज़ा भर लगाया जा सकता है.

देखा जाये तो टेलीविज़न इंडस्ट्री से आत्महत्या की ये पहली खबर  नहीं आ रही है. पिछले महीने ही लोकप्रिय तमिल टीवी एक्टर एस.प्रशांत ने भी इसी प्रकार आत्महत्या कर ली थी. वहीँ टीवी एंकर निरोषा ने खुद को ख़त्म कर लिया. फेहरिस्त छोटी नहीं है. 24 वर्षीय कन्नड़ टीवी अभिनेत्री श्रुति, तेलगू अभिनेत्री दीप्ति (रामा लक्ष्मी), बंगाली अभिनेत्री दिशा गांगुली ने भी अपनी ज़िन्दगी को इसी प्रकार इतिश्री दे दी.  इन सभी आत्महत्याओं  के पीछे लगभग कॉमन वजहें ही रही हैं और वो थीं ‘निराशा’ या ‘कुंठा’ फिर चाहे वो किसी भी कारण से रही हों. 
आज भारतीय टेलीविज़न इंडस्ट्री इतनी बढ़ चुकी है कि यहाँ हर किसी के लिए अपार संभावनाएं हैं. क्षेत्र चाहे कोई भी हो एक लाइटमेन से लेकर एक्टर, प्रोडूसर तक की. हर साल टीवी इंडस्ट्री लगभग 24 फीसदी विकास कर रही है और नए-नए आयाम स्थापित कर रही है . क्योंकि ये रोजाना ऑन-एयर होने वाला मामला होता है ऐसे में हर काम रोज़ाना ही होता है. एपिसोडिक कहानी से लेकर, स्क्रीनप्ले, डायलॉग, शूटिंग, एडिटिंग और म्यूज़िक तक. ये ऐसी इंडस्ट्री है जहाँ रुकना और थकना सख्त मना होता है. एक वक्त था जब सप्ताह में केवल दो दिन एक धारावाहिक प्रसारित होता था. इसीलिए कहानियों की एक क्वालिटी हुआ करती थी. फिर बढ़ कर सोमवार से वीरवार तक प्रसारण कर दिया. लेकिन अब सोमवार से शनिवार और कुछ सोमवार से रविवार तक कर दिए हैं. उसी में महासंगम और महा-एपिसोड्स का कांसेप्ट भी इजाद कर दिया गया है. चैनल्स की ‘नंबर वन’  बने रहने की आपसी होड़ और प्रोड्यूसर की अधिक से अधिक पैसे कमाने की लालच में अक्सर प्रोडक्शन हाउस में काम करने वाले लोगों को इस थकान का ख़ामियाज़ा अपनी ज़िन्दगी से भुगतना पड़ता है. और खासकर एक्टर्स को. और अगर वे शो के लीड एक्टर हैं तो कई बार उन्हें केवल 2-3 घंटों के लिए ही सोने दिया जाता है. क्योंकि शूट ही इतना करना होता है. मेकअप, लाइट और व्यस्त दिनचर्या  के चलते बड़ी जल्दी ही ये अभिनेता / अभिनेत्री अपनी उम्र से कई गुना बड़े लगने लगते हैं. 



वहीँ दूसरी ओर देखा जाए तो अधिकतर इस इंडस्ट्री में काम करने वाले एक्टर मुंबई से बाहर के होते हैं. ऐसे में इन्हें न सिर्फ मुंबई जैसे महंगे शहर में अपने खर्चे पर रह कर जीना होता है बल्कि रहने के साथ इस शहर की जीवनशैली भी अपनानी पड़ती है. उस जीवन शैली में न सिर्फ महंगा खाना–कपडे होते हैं बल्कि पार्टियों में जाना और लोगों से संबंध स्थापित भी करना होता है. क्योंकि इस शहर में रहने के लिए आपका काम करना उतना ही ज़रूरी है जितना सांस लेना. कई सितारे इस होड़ में आगे निकल जाते हैं और कई पीछे रह जाते हैं. लेकिन जो पीछे रह जाते हैं वो न सिर्फ पीछे रह जाते हैं बल्कि भयावह कुंठा का शिकार भी हो जाते हैं. जो पार्टियों में पीने के बाद अक्सर गले मिलकर , या सेट पर ब्रेक के दौरान कोने में रोते हुए मिल जायेंगे. वजहें अक्सर दो ही होती हैं या तो कैरियर उतर चुका है या साथी से अनबन चल रही है. चूंकि टीवी इंडस्ट्री में लोगों की उम्र काफी छोटी होती है; लोग दो धारावाहिकों के बाद एक्टर को देखना पसंद नहीं करते सिर्फ कुछेक अपवादों को नज़रंदाज़ करें तो. साथ ही यहाँ रिश्तों की कोई अहमियत नहीं होती है. कब कौन किसके साथ है और किसके साथ नहीं है. कहना बेहद मुश्किल है. ऐसे में परेशानियाँ घेर ही लेती हैं. कुछ परेशानियों से निलकल जाते हैं लेकिन कुछ नहीं निकल पाते और एक बुरे अंजाम की ओर अग्रसर हो ही जाते हैं. 


मुंबई अपार संभावनाओं का शहर है. यहाँ रहने वाला कभी भूखा नहीं सोता लेकिन जितनी तेज़ी से ये शहर देता है उतनी ही तेज़ी से वापस भी ले लेता है और कब आप फ्रस्ट्रेशन का शिकार हो जायेंगे आपको भी जानकारी नहीं लगेगी. अक्सर दोस्त यहाँ आने की बात करते हैं. और मैं हमेशा उन्हें हिदायत देती हूँ कि दूर रहो इस शहर से खुश रहोगे, क्योंकि दूर से देखने में ये काफी लोक-लुभावन लगता तो है लेकिन बहुत मुश्किल है यहाँ जीना. अपने अनुभव से बता रही हूँ.

प्रत्यूषा तुम्हे भावभीनी श्रधांजलि !! 

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