हिंदी भाषा जो के हमारी एक धरोहर है किन्तु आज किसी कारणवश आज वह हमारी संस्कृति नदारद सी होती जा रही है.....हिंदी को महात्मा गाँधी तथा अन्य लोगो के प्रयासों के जरिये 1950 में राष्ट्रीय भाषा के रूप में पहचान मिली!.......भारतीय संविधान के अनुचछेद 355(2) तथा 351 के तहत 1965 में जोड़ा गया की ये भाषा भारतीय संविधान की कार्यकारिणी भाषा होगी.....!!!!!!!........
हिंदी भारत लगभग 12 राज्यों की कार्यालयी भाषा है....जिनमे अरुणांचल प्रदेश, बिहार, झारखण्ड, उतराखंड , मध्येप्रदेश , हरियाणा , दिल्ली , और महाराष्ट्र, आदि राज्य है.......ये ऐसे राज्य हैं जहाँ हिंदी भाषा सर्वाधिक फली और फूली है.....अरुणांचल प्रदेश का प्रत्येक आदमी हिंदी बोलने में जितना गर्व महसूस करता है उतना गर्व वह अंग्रेजी बोलने तक में नहीं करता है....एक भारत होने के बावजूद भी ....यहाँ अनेकों परेशानियाँ हैं!!!!!!!!!..........भारत में जितनी विविधताएँ है....उतने ही विवाद भी हैं....जहाँ एक ओर भारत में हिंदी को राष्ट्रीय भाषा का दर्जा मिला वहीँ दूसरी ओर दक्षिण में हिंदी के खिलाफ 'एंटी हिंदी एगिनेशन ऑफ़ तमिलनाडू' नामक आन्दोलन चलाया गया.....!!!!!.....जिसमे ये मांग की गयी की तमिलनाडू के पाठ्यक्रम से हिंदी भाषा को समाप्त किया जाये ....सन 1967 में जब इंदिरा गाँधी ने इस बात को मान लिया ओर हिंदी तथा अंग्रेजी दोनों भाषाओँ के प्रयोग की अनुमति मिली तो वहा ख़ुशी की लहर दौड़ पड़ी...!!!!!!!
बहरहाल आज हिंदी विश्व पटल पर अपनी एक अलग पहचान रखती है.....केवल भारत में ही नहीं आज हिंदी पाठ्य क्रम विदेशों में भी है......जैसे अमेरिका, इंग्लॅण्ड , फ़्रांस......जैसे अन्य विकसित देशों में भी हिंदी काफी लोकप्रिय हो रही है.......' The Australian National University ' में हिंदी से सम्बंधित कई कोर्स चलाये जाते हैं.....जिनमे हिंदी व्याकरण से लेकर हिंदी साहित्य तक सम्मिलित हैं......साथ ही साथ वे लोग वहां हिंदी दिवस भी मानते हैं.....!!!!!
हिंदी के भाषण
सही मायनो में यदि देखा जाये तो आज के राजनीतिज्ञों के भाषणों में हिंदी की कमी अनायास ही दिखाई पड़ जाती है.....और दिनों-दिन आज हिंदी प्रवक्ताओं की कमी देखने को मिल जा रही है.....जो शायद भारतीय राजनीति के लिए काफी दुर्भाग्यपूर्ण बात है........एक ज़माना था जब प्रत्येक राजनीतिज्ञ हिंदी में भाषण देने की कोशिश करता था ....!!!!क्योंकि हिंदी भाषणों का जनता पर सीधा प्रभाव पड़ता था....उन भाषणों में आम जन जीवन अपनी अभिव्यक्ति को पता था...इसीलिए नेताओं के भाषणों को सुना जाता था....!........फिर चाहे वे महात्मा गांधी हों ...जवाहरलाल नेहरु हों....मुहम्मद अली जिन्ना हों.....सरदार वल्लभ भाई पटेल हों....या अन्य नेतागण ......!!!!! ........उनके बाद अटल बिहारी वाजपेयी...लाल कृष्ण अडवानी....इत्यादि नेतों ने इस रिवाज को आगे बढाया....!!!!!!.......इन नेताओं में एक नेता इसी भी थीं जिन्हें हम भुलाये नहीं भूल सकते हैं ....और वे थीं जवारलाल नेहरू की पुत्री श्रीमती इंदिरा गांधी......वे ऐसी एकमात्र महिला राजनेता थीं जिनके वक्तव्यों में वो कड़कपन और रोब था जो स्पीकरों को गूंजने पर मजबूर कर देता था.......जिन भाषणों को सुनकर श्रोताओं की तालियों की गडगडाहट आसमाँ तक पहुँचती थी....!!!!!!...........क्योंकि हिंदी भाषणों में वो बात हुआ करती थी जो श्रोतों को बांधे रखती थी किन्तु आज धीरे ध्रीरे हिंदी राजनेताओं की बहसों और वक्तव्यों से नदारद सी होती जा रही है...वजह बताई जाती हैं भूमंडलीकरण का दौर और विदेशों से सम्बन्ध...तो उस दौर में भी था....महात्मा गाँधी क्या विदेश से पढ़ कर नहीं आये थे ?....जवाहर लाल नेहरु तो इंग्लॅण्ड के प्रिंस से भी ज्यादा लाडले थे...सुभाष चन्द्र बोस का आना जाना तो विदेशों मे लगा ही रहता था....V D सावरकर की तालीम भी विदेश में ही हुई...किन्तु ये ऐसी शख्सियतें थीं जिन्होंने अंग्रेजी जानते हुए भी अंग्रेजी को तवज्जो न देकर हिंदी में अपनी बात जनसाधारण तक पहुंचाई और वे सभी सफल भी हुए....किन्तु आज के कुछ राजनेताओं को छोड़ कर अन्य अधिकतर राजनेता अपने भाषणों को अंग्रेजी में देना पसंद करते हैं....जबकि वे इस बात को जानते हैं की इस देश की 70 प्रतिशत जनता ग्रामीण इलाकों में रहती है....!!!
हिंदी बनाम अंग्रेजी
वैसे तो हिंदी भाषा विश्व पटल पर अपनी एक अलग पहचान रखती है.....पर अपनी इक अलग पहचान रखती है...और खुद भारत में हिंदी अन्य सभी भाषाओँ में सर्वाधिक प्रयोग में ane वाली भाषा है....क्योंकि हिंदी और अंग्रेजी दोनों ही भारत में कार्यकारिणी भाषाएँ हैं...इसिलए आज दोनों को ही एक करने की कवायद ज़ोरों पर है....भारत में अंग्रेजी बोलने वाले काफी लोग हैं...लेकिन वे केवल शहरों तक ही सीमित है...ग्रामीण अंचलों में ऐसा कुछ नहीं है...!!!! ऐसा इसिलए क्योंकि भारत की लगभग
70 प्रतिशत आबादी ग्रामीण इलाकों में रहती है......!!!!अंग्रेजी न बोल पाने वाले लोग केवल गाँव में ही नहीं हैं...बल्कि तों और सिटी में भी अधिकतर लोग अंग्रेजी नहीं बोल पते हैं...!!!
70 प्रतिशत आबादी ग्रामीण इलाकों में रहती है......!!!!अंग्रेजी न बोल पाने वाले लोग केवल गाँव में ही नहीं हैं...बल्कि तों और सिटी में भी अधिकतर लोग अंग्रेजी नहीं बोल पते हैं...!!!
दरअसल भारत में केवल 5 से 25 प्रतिशत लोग ही अंग्रेजी बोल पातें है.....यदि मानक अंग्रेजी की बात करें तो केवल 25 फीसदी ही भारतीय मानक अंग्रेजी बोल पाने में सक्षम हैं....अर्थात प्रभावशाली और सही अंग्रेजी बोलने वालो की संख्या आज के दौर में भी कम है....!!!! अंग्रेजी विश्व में सर्वाधिक बोली jane वाली भाषाओं में पहले स्थान पर आती है आज का दौर जो की पोपुलर कल्चर और ग्लोबलाईजेशन का दौर है , जिसमे प्रत्येक वस्तु अपने मौलिक गुणधर्म से अलग हट टी नज़र आ रही है...ऐसे में हिंदी कहा 'हिंदी ' रहने वाली है??? ... आज हिंदी और इंग्लिश भाषा ने मिलकर एक नयी भाषा 'हिन्गलिश' भाषा का आगमन किया है या फिर कहें कि प्रादुर्भाव किया है...!!!! इस कल्चर के दौरान चाहे वह फिल्म हो ,समाचार चैनल हो, रेडियो हो या अन्य बोलचाल की शैली ' हिन्गलिश 'से ही प्रभावित है.......और धड़ल्ले से इस भाषा का प्रयोग किया जाता है...!!!! आज का युवा हिंदी बोलने में शर्म और झिझक महसूस करता है.... वहीँ दूसरी ओर गलत हिंदी बोलने को फैशन मानता है.....उन्हें शायद हिंदी भाषा आज एक पिछड़ी और निचले वर्ग की भाषा मात्र लगती है......जबकि वे इस बात को भूल रहे हैं की संपूर्ण विश्व में लगभग पांच सौ मिलियन लोग हिंदी भाषी हैं...!!!! खुद भारत की लगभग चालीस फीसदी जनसख्या हिंदी भाषा का प्रयोग करती है...खुद भारत में ३६९८३९,30, बंगलादेश में ३४६,३०..बेल्जिअम में ८,४५५...ब्त्स्वाना में २००,मिलियन ..जर्मनी में २४,५०० ....नेपाल में ५७०९९७ लोग ..न्यूजीलैंड में ११,२००...फिलिपिनसे में २४१५.....सिन्गापोरमें ५०० .....साउथ अफ्रीका में ८९०२९२....में इतने लोग संपूर्ण विश्व में हिंदी भाषी हैं ...!!!!!!!
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