पो[पुलर कलचर का प्रभाव प्रत्येक जन पर दिखाई दे जाता है!....पोपुलर काल्चर का सर्वाधिक प्रभाव यदि किसी पर दिखाई देता है तो वो है 'वेशभूषा और परिधान' !............नीली जींस ओह!!!! माफ कीजिएगा जींस का तो मतलब ही 'नीला' होता है!.... बहरहाल जींस और जींस के साथ के साथ के नाना प्रकार के परिधान !......शहरों में तो काफी समय से है लेकिन ग्रामीण अंचलों में तो हाल ही में आए है!...कुछ अजीबो गरीब किस्म की जींस चलने लगी है ....उधाहरण के लिए फटी हुई जींस या फिर स्टोन-वाश जींस !....चलिए शहरों में तो ये सब आम बात है किन्तु गांवो में ये साधारण बात नहीं है....जब वहा के युवा इस प्रकार के परिधान पहनते है तो गाँव की 'चोपाल' पर बेठे बड़े-बूढ़े अक्सर ये कहते नज़र आ जाते है की " ये आज कल के बालको को हो क्या गया है????कपडे ख़तम हो गए है क्या जो पुराने कपडे पहन कर घूम रहे है!...ये भी कोई फैशन है क्या?????...........यानि की एक वर्ग इस तरह के परिधानों को सिरे से नकार रहा है!............. और आज.से ही नहीं पुराने ज़माने .........से चलिए एसा उदहारण लेकर आदि काल में चलते है...जब इंसान को आदि मानव या होमो के नाम से जाना जाता था!.......यदि उस समय में पोपुलर कल्चर के परिधानों की कल्पना की जाये तो कैसा लगे?.....हाँ तो हम बात कर रहे है आदि काल की जब मानव 'परिधान' नामक वस्तु से अनभिज्ञ था यानि की कपड़ों के नाम पर उसके शरीर पर कुछ भी नहीं होता था.....ऐसे में उस समय यदि किसी जंगल गाँव में कुछ नवयुवक पश्चिम से प्रभावित होकर कुछ परिधान नामक शौक को अपना कर जंगल में घूम रहे होते तो कैसा होता???उस समय तो कपड़ो के नाम पर हम केवल कुछ पत्तियां या फिर किसी जानवर की खाल को ही रख सकते है!.....यानि की कुछ युवक और युवतियां पत्तियां लपेटना शुरू कर दिया होगा.....पत्तियां देखा कर तो कुछ जानवर भी उनके पीछे पड़े हुए दिखाई दे जाते होंगे.....और वे अक्सर इधर-उधर भागते हुए नज़र अ जाते होंगे!!.....कुछ गुफाओं में बेठी गृहणिया उन पर हंसती होंगी और चोपाल पर बेठे हुए बड़े-बूढ़े आदि मानव ये कहते नज़र आते होंगे की "बताओ क्या ज़माना आ गया है....एक हमारा ज़माना था जब सादगी और सीधापन आँखों में नज़र आता था....और एक ये ज़माना है....जहा इन्हें शर्म ही नहीं है....बड़ों का लिहाज नहीं है.....पता नहीं कहा की सनक सवार हो गयी ही इन्हें???......राम जाने ये पत्ते और खाल क्यों लपेटकर घूमते है.....इस से क्या सुन्दरता बढ़ जाती है?????.....सुसरे जानवर और पीछे पढ़ जाते है!
Monday, 5 September 2011
POPULAR CULTURE OR PARIDHAN
पो[पुलर कलचर का प्रभाव प्रत्येक जन पर दिखाई दे जाता है!....पोपुलर काल्चर का सर्वाधिक प्रभाव यदि किसी पर दिखाई देता है तो वो है 'वेशभूषा और परिधान' !............नीली जींस ओह!!!! माफ कीजिएगा जींस का तो मतलब ही 'नीला' होता है!.... बहरहाल जींस और जींस के साथ के साथ के नाना प्रकार के परिधान !......शहरों में तो काफी समय से है लेकिन ग्रामीण अंचलों में तो हाल ही में आए है!...कुछ अजीबो गरीब किस्म की जींस चलने लगी है ....उधाहरण के लिए फटी हुई जींस या फिर स्टोन-वाश जींस !....चलिए शहरों में तो ये सब आम बात है किन्तु गांवो में ये साधारण बात नहीं है....जब वहा के युवा इस प्रकार के परिधान पहनते है तो गाँव की 'चोपाल' पर बेठे बड़े-बूढ़े अक्सर ये कहते नज़र आ जाते है की " ये आज कल के बालको को हो क्या गया है????कपडे ख़तम हो गए है क्या जो पुराने कपडे पहन कर घूम रहे है!...ये भी कोई फैशन है क्या?????...........यानि की एक वर्ग इस तरह के परिधानों को सिरे से नकार रहा है!............. और आज.से ही नहीं पुराने ज़माने .........से चलिए एसा उदहारण लेकर आदि काल में चलते है...जब इंसान को आदि मानव या होमो के नाम से जाना जाता था!.......यदि उस समय में पोपुलर कल्चर के परिधानों की कल्पना की जाये तो कैसा लगे?.....हाँ तो हम बात कर रहे है आदि काल की जब मानव 'परिधान' नामक वस्तु से अनभिज्ञ था यानि की कपड़ों के नाम पर उसके शरीर पर कुछ भी नहीं होता था.....ऐसे में उस समय यदि किसी जंगल गाँव में कुछ नवयुवक पश्चिम से प्रभावित होकर कुछ परिधान नामक शौक को अपना कर जंगल में घूम रहे होते तो कैसा होता???उस समय तो कपड़ो के नाम पर हम केवल कुछ पत्तियां या फिर किसी जानवर की खाल को ही रख सकते है!.....यानि की कुछ युवक और युवतियां पत्तियां लपेटना शुरू कर दिया होगा.....पत्तियां देखा कर तो कुछ जानवर भी उनके पीछे पड़े हुए दिखाई दे जाते होंगे.....और वे अक्सर इधर-उधर भागते हुए नज़र अ जाते होंगे!!.....कुछ गुफाओं में बेठी गृहणिया उन पर हंसती होंगी और चोपाल पर बेठे हुए बड़े-बूढ़े आदि मानव ये कहते नज़र आते होंगे की "बताओ क्या ज़माना आ गया है....एक हमारा ज़माना था जब सादगी और सीधापन आँखों में नज़र आता था....और एक ये ज़माना है....जहा इन्हें शर्म ही नहीं है....बड़ों का लिहाज नहीं है.....पता नहीं कहा की सनक सवार हो गयी ही इन्हें???......राम जाने ये पत्ते और खाल क्यों लपेटकर घूमते है.....इस से क्या सुन्दरता बढ़ जाती है?????.....सुसरे जानवर और पीछे पढ़ जाते है!
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3 comments:
bahut hi satik bat kahi hai aapne.magar aaj ke yug ka jo soch hai vah pahele se bilkul viprit hai. hum bhale hi ek taraf popular culture me ji rahe hai magar hamari mansikta kahi na kahi jirti hi ja rahi hai.
waow..nice ...main iske sare notes is baar tjse he lene wale hu....main iti ki baat se sehmat hu..ek taraf hum aaj k paridhano se apne modern hone ka udharan dene ki koshsh krte h ...dusri aor hum dakiyanusi baaton adambaro...andhvishwaso ko mante h...bili rasta kaat jae to rasta badal lete h..road pe nimbu mirchi pada ho to side se niklte h...chorahe k bech se niklne mai sankoch karte h..mansikta ka ye kaisa popular cultr h...
saba......and iti....ap dono ekdum theek keh rahi hain......!!!!!
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