Friday, 6 January 2012

'गंवार' गाली है'............तो ' शहरी' क्या है?????




                         अक्सर हम लोगो को गंवार कहकर दुत्कारते रहते हैं....'गंवार'शब्द आज मानो ऐसे लोगो का पर्यायवाची बन चुका है   जो अनपोलिश्ड   हैं,जो शायद कम पढ़े लिखे हैं, जिनमे आधुनिकता सम्बन्धी विचारधारा  की कमी है..!!! हम आज कल उन्ही लोगो को गंवारो  की श्रेणी में रखते हैं.....!! वही दूसरी और गंवार कह कर गालियाँ देते नज़र आते हैं...!!! ये परिभाषाएँ तो हमारे द्वारा गढ़ीं गयीं हैं...किन्तु क्या हमने कभी इस विषय पर सोचा है की...आखिर गंवार  का शाब्दिक अर्थ क्या है???? .....दरअसल गंवार का शाब्दिक अर्थ ग्रामीण समाज में रहने वाले व्यक्ति  को कहा जाता है...!! इस प्रकार यदि सोचा जाये की ग्रामीण समाज में रहने वाले को गंवार कहा जाये तो ...शहर में रहने वाले लोगों को क्या कहा जाये??? यदि गाँव में रहने वाले व्यक्ति को गाली से सम्मानित किया जाये तब तो शहर में रहने वाले "शहरी " को भी "शहरी" गाली ही होनी चाहिए !!!! किन्तु ऐसा है नही ..!!!

        आज भारत में लगभग 92000 गाँव हैं...जिनमे लगभग देश की 78% जनता रहती है....!!!  आज भारत के ग्रामीण इलाके ही भारतीय अर्थव्यवस्था की बैकबोन  कही जाती है...!!!जिसने की पिछले 6 दशकों से भारतीय अर्थव्यवस्था को अपनी पीठ पर ढ़ोना शुरू किया है...!!!आज भारत को लगभग 60 फीसदी रोज़गार केवल ग्रामीण सेक्टर से ही उपलब्ध होता है..!!! वहीँ  दूसरी or  भारतीय कल्चर सेक्टर से बड़ी मात्रा में कच्चा माल उपजता  है....उदाह्रंतः टेक्स टाइल, चीनी ,जूट, फ्लोरमिल्स,वनस्पति इत्यादि ..!!! आज बहुत सी डाइरेक्ट इंडस्ट्रीज़ और एस.एस.आई   भारतीय हथकरघे को ही प्राथमिकता देते हैं...!!!  बुनाई,सिलाई ,कढाई और हाथों  से बनने वाली अन्य वस्तुएं ....मधुबनी पेंटिंग जो की आज विश्व्व्यख्यात है....दुनिया भर से आने वाले पर्यटक मधुबनी पेंटिंग को पसंद करते हैं.....जूट से बनी वस्तुएं काफी लोकप्रिय हैं ...!!!इस प्रकार के अन्य कारीगरी,शिल्पकारी और दस्तकारी से भारतीय बाज़ार को एक बहुत बड़ा राजस्व प्राप्त होता है..!!!

 आज से ही नहीं चिरकाल से भारतीय कृषिक्षेत्र ने भारतीय अन्तराष्ट्रीय व्यापर में एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है....!!!आज हम भरी मात्रा में चीनी,चाय,काफी,तिलहन,जूट,तम्बाकू, इत्यादि सामान ग्रामीण सेक्टर फास्टर उपजता है....!!!यदि गौर किया  जाये तो आई एम् सी जी  सेक्टर का व्यापार  तो ग्रामीण मार्केट पर ही निर्भर है ..!!एक सर्वेक्षण के अनुसार  ५० फीसदी इन्श्योरेंसे पोलिसीज़ केवल रुरल मार्केट में ही बिकती हैं !


              भारत को लोकप्रिय और विख्यात बनाने वाले फेक्टर भारतीय  गाँव से ही आते है ...एक भारत होने के  बावजूद यहाँ सभ्यतों और संस्कृतियों की जितनी विविधता देखने   देखने को मिलती हैं ,दुनिया के किसी अन्य देश में नहीं मिलतीं हैं...!!!कुछ लोगों का मान न  है की शहरों ने  ही एक बुर्जुआ समाज  और बुद्धिजीवी वर्ग दिया है..किन्तु असल में ऐसा है नहीं..भारत को ग्रामीण इलाकों से ऐसे नायब  हीरे रहे हैं...जिन्होंने देश की साख विश्वस्तर पर बनाइ  है...यदि कुछ ही लें तो देश के पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शाश्त्री,देश के पूर्व राष्ट्रपति और परमाणु के मशहूर वैज्ञानिक डॉ.ए.पी.जे .अब्दुल कलाम जो की मद्रास के एक छोटे से गाँव रामनाथपुरम  के  रहने वाले थे ..,देश के सबसे सफलतम कप्तान एम् .एस .धोनी .और एक ऐसी इंडस्ट्रियल शख्शियत जिसने औध्यौगिक जगत में भारत का नाम स्वर्णिम अक्षरों में लिखने की नींव डाली  धीरू भाई अम्बानी ...जो की गुजरात के एक छोटे से गाँव के रहने वाले थे ..!!!और यदि खेल के क्षेत्र में देख जाये तो वर्तमान समय में जितने खिलाड़ी ग्रामीण क्षेत्र से हैं उतने शहरी क्षेत्रों से नहीं हैं...!!!फिर चाहे वो विजेंदर सिंह हों, रांची की दीपिका कुमारी हों, सुनीता हों,,,खली हों जिन्होंने  पहली बार  WWE  में भारत का नाम दिया ..!!! कॉमन वेल्थ में जहाँ भारत ने १०१ मेडल जीते उनमे ६० प्रतिशत मेडल तो ग्रामीण क्षेत्रों से आने वाले खिलाडिओं ने ही जीते थे..!!!तो फिर ऐसे में ग्रामीण लोग गंवार कैसे हुए???

             आज एक ग्रामीण व्यक्ति किसी भी शहरी व्यक्ति से तुलनात्मक दृष्टि से अधिक ताकतवर , मेहनती और स्वस्थ्य   ही  पाया जाएगा ....!!! शहरों के औधौगिकिकरण  ने हमेशा बेक़सूर गाँव वालों की जान ली हैं ,,,उन्हें उन्ही के घर में जा-जा कर मारा है ...उदहारण के लिए हम भोपाल गैस त्रासदी लें ,प्रदूषित नदियाँ ले ,तेलंगाना लें ...!!! ऐसे में प्रसिद्ध कथाकार नार्मल वर्मा द्वारा लिखी गयी एक एकांकी याद आ रही है ' ठूँठा  आम " जो उन्होंने कई दशकों पहले लिख दी थी ..किन्तु उनका गाँव सिंगरौली  आज भी याद आ जाता है..जब औधौगिकरन  की बात हैं .....!!!!

  आज कायदे से देखा जाए तो शहरों के पास दौड़-भाग और बढती आबादी के अलावा और है क्या ???? जहा तक मेरा ख्याल है पर कुछ नहीं है...!!! किन्तु गाँव के पास आज भी अनेकों संपदाएँ मौजूद हैं जो शहरों को धनी बनती हैं..!!! आंकड़ों की माने तो प्रत्येक वर्ष ५ लाख लोग शहरों में प्रति वर्ष रहने के लिए आ रहे हैं..!!!

           आज भी गाँव के लोग प्रेम,एकता और भाईचारे के लिए प्रसिद्ध हैं.....वे अपने आज भी अपने परिवार को पहला दर्जा देते हैं हिं फिर खुद को....हम आज भी गाँव में संयुक्त परिवार देख सकते हैं...लेकिन शहरों की दें है आया का   एकल  परिवार जहाँ पोता और दादा एक साथ नहीं रह सकता है ...!!!
 
     यदि कुछ अपवादों को छोड़ दें तो आज भारतीय ग्राम काफी हद्द तक विकसित होते जा रहे हैं...ऐसे में उन ग्राम-वासिओं को गंवार नामक गाली देना कहाँ की समजदारी है...यदि गंवार गाली है तो फिर शहरी भी एक गाली ही होनी चाहिए...!!!! 

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