Tuesday, 26 April 2016

भीख मांगने से बेहतर है महिलाएं डांस कर जीवन यापन करें

सुप्रीम कोर्ट के जज दीपक मिश्रा ने 25 अप्रैल  को महाराष्ट्र सरकार को मुंबई डांस बार मामले में काफी  कड़ी
फटकार  लगाते  हुए कहा है कि ‘सड़कों  पर  भीख मांगने  से  बेहतर  है की महिलाएं स्टेज पर डांस कर अपना  जीवन यापन करें.’ ध्यान  देने वाली बात ये है कि यहाँ उनका तात्पर्य देह व्यापार  से भी है. साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार को रेगुलेशन और प्रतिबन्ध में फर्क भी समझाया. कोर्ट के अनुसार राज्य सरकार  ने कहा  है कि वह इसे  रेगुलेट कर रही है लेकिन कहीं न कहीं उनका आशय डांस बारों को बंद करने से है.  गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने डांस बार मामले को संवैधानिक दायरे का ध्यान में रखते  हुए कहा कि यदि सुप्रीम कोर्ट ने आदेश को पास कर दिया है तो ऐसे में सरकार को कोई हक नहीं है कि वो इस पर रोक लगा सके. लेकिन इसी के साथ कोर्ट ने डांस बार शुरू करने  को परिसीमित भी किया है. जिसमें उन्होंने डांस करने वाली महिलाओं के सम्मान और श्लीलता का ध्यान रखा जाना, लाइसेंस लेने के लिए बीएमसी के स्वास्थ्य विभाग, फायर विभाग तथा रन भूमि प्रशिक्षण मंडल के लाइसेंस लेने की ज़रुरत नहीं होगी. लेकिन डांस बार  का लाइसेंस लेते वक्त मालिक की आपराधिक प्रष्ठभूमि की जांच पड़ताल हफ्ते भर के भीतर आवश्यक होगी. साथ ही डांस बार का स्टेज तीन फिट तक ऊंचा और बार डांसर्स को 5 फिट की दूरी कायम रखनी होगी.

महाराष्ट्र राज्य सरकार ने 2005 में सभी बारों  में डांस पर पाबन्दी लगा दी थी लेकिन तीन एवं पांच सितारा होटलों को इस प्रतिबन्ध से मुक्त रखा था.  लेकिन प्रतिबन्ध को लेकर राज्य सरकार  कानूनी  लड़ाई हार चुकी है. गौरतलब है की बार डांसरों के संगठन ने जीविका का अधिकार को मुद्दा बनाते हुए सर्कार के इस निर्णय को भेदभावपूर्ण बताते हुए हाईकोर्ट  में चुनौती दी थी और कोर्ट ने डांस बार एक बार पुनः शुरू करने का फैसला सुनाने पर राज्य सरकार ने  सुप्रीम कोर्ट  में अपील की थी. इस से पहले जुलाई 2013 में शीर्ष अदालत ने भी हाईकोर्ट के फैसले को बरक़रार रखते हुए नए लाइसेंस लेकर एक बार फिर सी बार शुरू किये जाने के पक्ष में रजामंदी दी थी. हालाँकि राज्य सरकार  ने ऐसा कानून बनाने  की व्यवस्था भी की जिसके तहत डांस बार फिर से शुरू न किये जा सकें. ऐसे में राज्य सरकार का मानना  है कि डांस बारों के शुरू होने से जहाँ एक ओर महिलाओं की जिस्मफरोशी बढती है वहीँ महिलाओं की तस्करी को भी बढ़ावा मिलता है. साथ ही डांस बार अवैध कामों का अड्डा भी बन जाते हैं इन दलीलों के साथ तत्कालीन गृह मंत्री आर.आर पाटिल ने 15 अगस्त 2005 में डांस बारों पर पाबन्दी का फैसला और विधेयक तैयार किया था.

कई महिलाओं के लिये रोज़ी रोटी का साधन यह डांस बार काफी समय से राज्य में बहस का मुद्दा रहे हैं. फ़िलहाल राज्य सरकार डांस बार के लाइसेंस देने में कमियाँ निकाल रही है और लाइसेंस देने में कोताही भी बरत रही है. वहीँ सुप्रीमकोर्ट ने सरकार को दस मई को जवाब देने के लिए भी कहा है क्योंकि सरकार ने हलफनामा भी दाखिल करते हुए सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि 115 डांस बार ने पुलिस के निरिक्षण लिये आमंत्रण नहीं दिया  है. वहीँ एक और 39 बारों के निरिक्षण में पाया गया है कि उन्होंने 26 शर्तों का पालन नहीं किया गया है.
वहीँ इसमें एक और पहलु भी देखा जा सकता है जहाँ  सरकार  ने कहा है की वे अश्लीलता को कम करना चाहते हैं वहीँ सुप्रीम कोर्ट के अनुसार डांस अश्लील नहीं होना चाहिए . लेकिन अब ध्यान देने वाली बात ये है कि उस अश्लीलता का पैमाना क्या होगा? क्योंकि श्लील और अश्लील का पैमाना तय करना किसी के भी हाथ में नहीं है. वहीँ इस बात को भी नहीं नकारा जा सकता कि डांस बारों में डांस ख़तम होने के बाद होने वाला देहव्यापार भी शामिल होता है, जिसमें सरेआम ज़बरदस्ती और बार डांसर्स की मजबूरी का फायदा उठाकर उनका शोषण किया जाता है जिसमें कई महिलाओं से लेकर बार प्रबंधन का भी हाथ होता है. ऐसे में सरकार को डांस पर प्रतिबन्ध लगाने की जगह परदे के पीछे होने वाले अपराधों को ख़त्म करना चाहिए. इस से पहले भी सुप्रीम कोर्ट 7 फ़रवरी,2014 को भारतीय दंड संहिता एक पुराने ‘अश्लीलता’ के प्रावधान की नयी  व्याख्या करते हुए महिलाओं की नग्न तस्वीरों को हमेशा अश्लील नहीं माना  जा सकता. ऐसे में डांस बार की डांसर्स के कपड़ों को अश्लील कहना ठीक नहीं होगा.


2005 में जब बारों पर प्रतिबन्ध लगाया गया था उस वक्त 75,000 महिलाएं मुंबई में कार्यरत थीं जिनमें लगभग 90 फ़ीसदी लड़कियां यानि तकरीबन पचपन हज़ार गायिका, नृत्यांगना पिछड़ी जनजातियों से संबंध रखने वाली थीं. क्योंकि कई क्षेत्रों से आने वाली औरतें इसके ज़रिये एक अच्छी रकम कमा पा रही  थी जिनके पास केवल एक ही ज़रिया होता है खाने-कमाने का उदाहरण स्वरुप नट, कंजर, बेढ़ीया आदि प्रजाति से ताल्लुकात रखने वाली महिलाएं . ऐसे में उनकी जीविका के साधन को उनसे दूर करके राज्य सरकार ने कहाँ तक न्याय किया है ये एक सवालिया निशान लगाने वाला मुद्दा  है.


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