Saturday, 28 November 2015

पिज़्ज़ा का डब्बा


“बाजी तू देखियो जब मैं बड़ा आदमी बन जाऊंगा न तो तेरे को पिज़्ज़ा का पूरा एक डब्बा लेकर दूंगा....”
सात साल के अदनान ने अपनी बड़ी बहन ज़ुल्फिया को पिज़्ज़ा की एक दुकान की तरफ इशारा करते हुए...बड़े रोबदार अंदाज़ में कहा.
”चुप रह तू ... वरना मरेगा...अभी जितना तेज़ भाग सकता है न भाग”
लेकिन अदनान ने अपना पेट पकड़ कर कहा
“अब मेरे से नहीं भागा जा रहा बाजी..”

साभार : गूगल 
अगर आज नमाज़ी ज़ुल्फिया और अदनान को न भगाता तो न ज़ुल्फिया की अस्मत बचती और न ही अदनान का हाथ...आज की दोनों बच्चों के लिए शायद सबसे काली रात होने को थी...
ज़ुल्फिया ने अदनान को गोद में उठाया और एक बार फिर से भागने लगी. रात के तकरीबन 10  बजने को हैं. लेकिन ज़ुल्फिया अदनान को लेकर बस भागे जा रही है मानों अब पीछे मुड़कर कभी नहीं देखना है.
अदनान और ज़ुल्फिया दोनों भाई बहन हैं नहीं... लेकिन पिछले कुछ दो सालों से ज़ुल्फिया ही अदनान को सम्हाल रही है. अदनान लगभग 5 साल का था जब फैयाज़ उसे मुजफ्फरपुर से आते समय रेलवे स्टेशन से मुंबई उठा लाया था. अदनान को उस वक्त सिर्फ अपना और अपने पिता का नाम ही पता था न गाँव का पता था और न ही शहर का. वहीँ ज़ुल्फिया कुछ 15 -16  साल की बेहद मासूम बच्ची है...जिसकी मासूमियत खूबसूरती से ज्यादा खूबसूरत है. जब फैयाज़ अदनान को लेकर झुग्गी में आया था तब ज़ुल्फिया भी बेहद छोटी थी...लेकिन जब अदनान को लाया गया तो दिन-रात वो रोता ही रहता था.
ज़ुल्फिया और अदनान जैसे फैयाज़ की खोली में कुछ 20–25 बच्चे और रहते थे जो अलग अलग तरह से फैयाज़ को पैसे कमा कर देते थे कुछ चोरी से तो कुछ जेब काट कर और बाकी भीख मांग कर. लेकिन उस दौरान ज़ुल्फिया ने ही उसे सम्हाला दूसरे बच्चों के साथ-साथ दोनों बड़े होने लगे और अदनान ज़ुल्फिया के साथ ज्यादा घुल मिल गया. लेकिन आज की रात दोनों के जीवन की एक वीभत्स रात होने वाली थी.
फैयाज़ महिम की झुग्गियों में रहने वाला एक नामी गुंडा है. नशे के कारण ऑंखें हमेशा लाल रहती है मानों लहू बरस रहा हो | हाथ में एक कीमती घडी पहनता है...जेब में एप्पल का लेटेस्ट मॉडल  मोबाइल और गले में एक मोटी सी सोने की चैन. ज़ाहिर सी बात थी की गुंडा है तो काम तो करता ही नहीं था लेकिन हाँ उसका एक बड़ा कारोबार था और कारोबार था बच्चों की खरीद-फरोख्त और चोरी का. जो देश भर में सबसे घिनौना लेकिन एक बड़े पैमाने का कारोबार है.
और दिनों की तरह फैयाज़ रोजाना शाम को 20 बाई 20 की झुग्गी में आया और गाली देकर बोला..
 “हरामियों की औलादों ... तुम मेरी ही बदौलत जिंदा हो वरना कब के मर गए होते...और अगर कभी भी किसी ने यहाँ से भागने की कोशिश की तो न जिंदा रहेगा और न ही मर पायेगा ”  
फैयाज़ ने सभी बच्चों की गिनती की और जैसे ही कोने में बैठी ज़ुल्फिया जो अदनान और बाकी बच्चों को खाना खिला रही थी, पर ध्यान गया तो आँखे थोड़ी छोटी करके गौर से ऊपर से नीचे तक ध्यान से देखा और बहार चला गया. बहार नमाज़ी बैठा हुआ था जो एक पैर से लंगड़ा तो था, लेकिन भागता ऐसे था मानो दुरोंतो थक जाये उसके सामने. नमाज़ी ने फैयाज़ को देखकर आदाब कहा. और फैयाज़ ने उसे कुछ धीमी आवाज़ में कहा और निकल गया. नमाज़ी की आँखों से चमक सी चली गयी फैयाज़ के जाते ही. मुंह पर एक पीला सा रंग फैल गया. उसने अपने मैले से पेंट की जेब से फ़ोन निकला और एक नंबर डायल किया
“भाई जान शाम को आजाओ और साथ में वो मशीन भी लेते आना ”...
इतना कह कर उसने फ़ोन काट दिया. नमाज़ी फैयाज़ का एक खास आदमी था जो झुग्गी में रहने वाले बच्चों का हिसाब रखता था.
दिसंबर का महीना जहाँ सूरज 6 बजे ही अलसा कर सोने चला जाता है. रात के 9 बजे थे एक औरत फैयाज़ के साथ झुग्गी के अन्दर आई और देखा तो वहां कुछेक बच्चे ही थे...ज़ुल्फिया और अदनान दोनों ही नहीं दिखे तो फैयाज़ ने नमाज़ी को आवाज़ लगायी...
“स्साले ... कहाँ हैं दोनों ? ...तुझे कहा था ना तैयार करके रखियो लौंडिया को ...”
नमाज़ी ने हिचकिचाते हुए कहा
“भाईजान अभी तो यहीं थे...अम्मी कसम नया सूट दिया था पहन ने को .. और वो भी उसी के साथ बैठा था “ ....
फैयाज़ ने ज़ोरदार एक तमाचा रसीद कर दिया...
“चल ढूंढ फटाफट..स्साले तेरी वजह से इतना बड़ा नुकसान हो गया... अगर नहीं मिले तो तेरी मौत पक्की है”....
नमाज़ी और फैयाज़ के साथी दोनों बच्चों को इस कदर खोज रहे थे मानों कोई कोई कुत्ता डायनामाईट की कोई सुरंग खोद रहे हों....लेकिन नमाज़ी खुश है... की आज उसने अपने गुनाहों की किताब में एक और गुनाह जुड़ने से रोक लिया.


वहीँ ज़ुल्फिया अदनान को लेकर इस कदर भाग रही थी मानों ये आखिरी काली रात थी इसके बाद शायद ऐसी सुबह होनी हो जो इस से पहले कभी किसी ने नहीं देखी हो. उसके चेहरे पर एक ऐसी ख़ुशी थी जो शायद दुनिया के सबसे खुशनसीब इंसान के ज़हन में भी न हो. अदनान अब भी सच्चाई से अनजान था की वो क्यों भाग रहे हैं और कहाँ भाग रहे हैं... दौड़ते  हुए दोनों दादर स्टेशन पहुंचे जहाँ एक ट्रेन खड़ी थी शायद ये ट्रेन उन्हें एक नयी ज़िन्दगी से रूबरू करवाने वाली थी....

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