Saturday, 17 September 2011

दो पाटो के बीच पिसता 'बुंदेलखंड'

बुंदेलखंड  अलग राज्य हो, ये सुनते ही  बुद्धिजीवियों को डंक लग जाते है.....उनके लिए बटवारा विनाश शब्द है.....बड़े को छोटे में बदलने वाला व्यवहार है !
   बुंदेलखंड का जितना दायरा है, वह  वहां के रहवासियों का है....बुंदेलखंड के पेड़ पोधे, जंगल, खनिज, झरने नदियाँ किले मंदिर और पर्यटन स्थल अपने है कि उनसे उनके रोज़गार चलें और वे अपने गौरव  के साथ जी सकें!......
         गौरव या गरीबी??????......क्या दिया है उत्तर प्रदेश और मध्य-प्रदेश कि सरकारों ने????.....प्राकृतिक सम्पदा पर ये सरकारें बुंदेलखंड कि ' गठरी में लगा चोर से ज्यादा कुछ नहीं है!....राजनैतिक लोग, सरकारी दलाल और भ्रष्ट प्रशासन दोनों राज्यों में बुंदेलखंड के शामिल खाते को मनमाने तौर पर भुना रहे है....यकीं न हो तो देख लिया जाये कि पहाड़ों को पीसने क लिए मशीने किस-किस की लगी है निश्चित ही पहाड़ों को उखाड़ फेकने का काम आम जनता नहीं कर रही है...जो कर रहे है उनका करिश्मा सामने है कि बुंदेलखंड बरसात के लिए तरस गया........जंगलों  कि कटाई जायज़  और नाजायज तरीके से  बराबर होती रही है....नतीजा ये हुआ कि धरती नंगी हो गयी है... शहला मसूद ने आवाज उठाई तो दबा दी गयी.....इस तरीके से भूमि पर कौन ध्यान दे ......उत्तरप्रदेश या मध्येप्रदेश कि सरकार दोनों के बीच पड़ी ये धरती दोनों का मुंह ताकने  के अलावा  और कर भी  क्या सकती है, दोनों सरकारों के पास ही अब उनकी मर्जी कि इसके मुह मैं कितना डाला जाये...!!!
       बुंदेलखंड के पास के अधिकार में नहीं है, दया कि याचना है....क्यों न हो , जब अपने बजट पर दूसरों का कब्ज़ा है.

1 comment:

sv said...

hmmm.....bundelkhnd ko ek alag rajy bana diya jana chahiye taki uske hit k bare mai b socha jae...na ki dusro ki hit purti bundelkhnd se ki jae...jaise ab tak hota raha h..