पिछले दिनों हिन्दू समाचर पत्र में छपा ये कार्टून काफी चर्चों का विषय बना रहा है ,
बीएसपी पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी बैठक के बाद पार्टी अध्यक्ष मायावती ने मीडिया को संबोधित करते हुए इस बात पर अपनी हामी भरी की बीएसपी यूपीए को फ़िलहाल तो समर्थन देती रहेगी ..लेकिन ये भी साथ
ही साथ कह ही दिया की ये उनका अंतिम फैसला नहीं
है। पार्टी ने अंतिम निर्णय का अधिकार मायावती को ही दिया है ...और अब वे ज्यादा
इस मुद्दे को नहीं खिंचेंगी और जल्द से जल्द इस मुद्दे पर वे अपना
अंतिम फैसला सुना देंगी। फ़िलहाल इन दिनों यूपी सरकार चारों तरफ घिरी हुई नज़र आ रही है। ऐसे में बहुजन समाज पार्टी ने केंद्र सरकार को मौहलत दे दी है लेकिन देखा जाये तो बदलते सियासी माहौल में समीकारणों को लेकर कुछ कहा नहीं जा सकता है। और न ही कांग्रेस पूरी तरह से आश्वस्त नज़र आ रही है। क्यूंकि आज के समीकरणों में ये कहना कठिन हो रहा है की "ऊंट कब,किस करवट बैठ जाये ". ऐसे में सत्ता पक्ष का परेशानी
में घिरे होना भी लाज़मी है।आने वाले कुछ समय में शीतकालीन सत्र भी शुरू हो जायेगा। जिसमे ज़ाहिरी तौर पर सरकार की घेराबंदी चारों ओर से की जाएगी। और साथ ही जहाँ तक अनुमान लगाया जाये तो इस सत्र में क्षेत्रीय पार्टियों की भूमिका विपक्ष से अधिक देखने को मिल सकती है। ऐसे में कांग्रेस के गढ़ में भी नए सिरे से रणनीतियां बनने लगी हैं। और ऐसे में सत्ता पक्ष की एक गलती से बना बनाया खेल बिगाड सकती है।
साथ ही कांग्रेस की निगाह
आने वाले गुजरात और हिमाचल प्रदेश के चुनावों पर भी हैं , क्योंकि सेकुलर दल के अंकगणित बहुत हद तक गुजरात और हिमाचल प्रदेश के चुनावों पर निर्भर करते हैं।
अगर बात करें बसपा और सपा की
तो फ़िलहाल तो दोनों ही पार्टियों ने रास्ता रोकने से मन कर दिया है। क्योंकि माया और मुलायम दोनों के ही समीकरण एक दूसरे की हवा के रुख से बनेंगे। वहीँ अगर देखा जाये तो तृणमूल
कांग्रेस के समर्थन वापस लेने के बाद से काफी डरी हुई दिखाई पड रही है। क्योंकि तृणमूल के समर्थन वापस लेने
के बाद से कांग्रेस को डीएम्के अन्ना और एनसीपी के सभी नखरों को भी झेलना पड रहा है। ऐसे में कांग्रेस ये समझौता करने को भी तैयार है की चाहे बीएसपी और
एसपी मुद्दों का विरोध करती रहें लेकिन समर्थन बनायें रखें। जैसा की गौरतलब है की
बीएसपी के अनुसार मायावती ने सत्ता दल को समर्थन इसलिए दिया था ताकि यूपीए "साम्पदायिक तकाटों
से लडने , दलित , पिछडे वर्ग के लोगों के सहायता में मदद कर सके लेकिन बीएसपी का
कहना है की " सरकार के हल फ़िलहाल के सभी निर्णय जनविरोधी रहे
हैं। इससे पहले भी मायावती ने मार्च में ये भी कहा था की "सरकार बढती महंगाई
से निबटने में नाकामयाब रही है।"
ऐसे में बीएसपी कभी हाँ करती नज़र आ रही है तो
कभी न करती नज़र आ रही है।।ठीक प्रकार से उसका सही रुख नज़र नहीं आ रहा है
..जिससे 'सरकार की साँसे रुकी तो कभी चलती नज़र आ रही हैं।'वहीँ आज मायावती
कांग्रेस की गले की हड्डी बनी पड़ी है "जो न तो निगलते बन रही है और ना
ही उगलते।"
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