Thursday, 2 May 2013

'गुलाबी' अरक्षित सीट!!

    पिछले सप्ताह भरतपुर एक शादी में जाना हुआ.  दोपहर 1:20 की गाडी  थी. पहले ही काफी देरी हो चुकी थी तो जल्दी-जल्दी में घर से निकली और 405 नारंगी रंग वाली बस में चढ़ी. चढ़ना हुआ ही था की ..बस में काफी ज़ोर-ज़ोर से आवाजें आ रही थीं. एक साठ-पैंसठ साल का सरदार  एक नौजवान लड़के से  अच्छी खासी बहस कर रहा था, या ये कहूँ की बाकायदा लड़ रहा था. "शर्म नहीं आती इन्हें.....लो बताओ ये पढ़े लिखे लोग हैं. इंसान की औलाद नहीं है ये......".  दूसरी तरफ लड़का भी अब बिफरने लगा था. एक बड़ा बैग हाथ और एक कंधे पर था ...तो, मैं तो रास्ता मांग कर आगे निकल गयी. वैसे मुद्दा अभी समझ नहीं आया था की हुआ क्या है....हाँ जब सरदार जी ने ये कहा की ..."हम इस उम्र में भी औरतों के लिए सीट छोड़ देते हैं, लेकिन ये खोता तो उन्ही की सीट पर बैठकर उन्हें नहीं बैठने दे रहा है."......तब समझ में आया की  मुद्दा ये है 'प्राइम-टाइम बहस का.
सरदार अब भी लाल-ततैया हो रहे थे लड़के पर. अगर वो अन्दर वाली सीट पर बैठे ना होते तो मेरे ख्याल से उस लड़के को ठीक-ठाक तरीके से सूंत चुके होते. अब लड़का भी सीट छोड़ चुका था . और वो भी जवानी वाला गुस्सा दिखाने लगा. तब बस के लोगों ने समझाया की '"उम्र का लिहाज़ करो यार." इतने में सरदार जी फिर बरस पड़े
 "तुम जैसे गंदे लोगों की वजह से ही सरकार को,अगर इन्हें ना बनाया  जाता  तो  तुम लोग और भी गंदगी फैला देते."  सरदार जी ये कहना था की मेरे बराबर वाली सीट पर बैठी बुर्के वाली  लड़की ने थम्स-अप करके "येस" कह.मानो उसके दिल की बात कह दी गयी हो .   अब उसी सीट के आगे वाली वरिष्ट नागरिकों वाली सीट पर एक मौलाना जो आलरेडी वरिष्ठ थे ,अपनी दो बच्चियों  के साथ बैठे थे. इतने में पीछे मुंह  कर के एक महिला से बोले "अरे ज़माना बेहद ख़राब हो चुका है ..क्या किया जाये.अरब में तो अब भी कानून है की  लड़कियों को बुरका  पहनना ही है..फिर चाहे वह  मुस्लिम की लड़की हो, हिन्दू की लड़की हो अंग्रेजन  हो. कोई किसी को छेड़ता तक नहीं है. लेकिन दिल्ली में हद मचा रखी है लड़कियों ने भी. " इतना कहना था की  महिला भी बोल उठीं .... "आजकल की लड़कियों का पहनावा ही सब चीज़ की जड़ है....जो लड़कों को पहनना चाहिये उसे लड़कियों पहनती हैं...ना दिलाओ तो मुंह फुला लेती हैं.कोलेज में इज्ज़त नहीं बनती इनके बिना. और इन्होने इशारे भरी आंखों से मेरी ओर देखा. मैंने भी शर्ट और जीन्स ही पहन रखी थी.महिला बराबर बोले जा रहीथी और साथ में मौलाना साहब उनका साथ दिए जा रहे थे .मैं खड़ी सुन ही रही थी. लेकिन बर्दाश्त्गी की भी एक  हद होती है. जब उन्होंने ये कहा की आजकल जो लड़कियों के साथ बुरा होने की ख़बरें आ  रहीं वो सब इनके फेशन की वजह से ही है. बिना बात का इतना मेकप करके घूमती हैं....खैर अब तो बस था....मैं बोल ही पड़ी...क्यों अंकल ये चार दिन पहले पांच साल की बच्ची के साथ  जो रेप हुआ है ...क्या वो भी जीन्स पहन कर या मेकप करके घूम रही थी? क्या उसे भी बुरका पहनना  चाहिए था? या फिर कल ही ढाई साल की बच्ची के साथ जो कुकर्म हुआ है....उसके पीछे भी इनमे से कोई वजह थी?...... "लाहौलवलाकुव्वत.....रेप जैसे शब्द को कितनी आसानी से कह रही हो तुम...." ये प्रतिक्रिया थी उन मौलाना साहब की. मेरे जवाब पर. मुझे हंसी आ गयी....और मैंने फिर कहा...साहब दुधमुही बच्चियों को नहीं छोड़ा जाता....हैवानों द्वारा. तो जवान लड़कियों की क्या कहा जाये. इस बात पर सबने मेरी बात पर हामी भरी....और मौलाना और महिला दोनों सांप के से बिल में घुस गए. फिर मौलाना बोल उठे..."दोज़क में जायेंगे ऐसे लोग तो...इंशाल्लाह". मैंने भी हँसते हुए "आमीन" कहा. स्टैंड आने वाला था...मैंने बैग उठाते हुए फिर कहा.....साहब हया आँखों में होती है...कपड़ों में नहीं. अगर आपकी आँखों में हया है तो आप बिना कपड़ों की औरत को भी बुरी नज़र से नहीं देखेंगे...और अगर नहीं है तो बुर्के वाली लड़कियों को भी आज कोई नहीं छोड़ता.....इतने में ही स्टैंड आ गया...तो बस से उतरना पड़ा.

       खैर मुद्दे की बात डीटीसी बसों में महिलों की सीटों की है...बसों में महिलाओं के लिए सीटें अरक्षित की गयीं हैं. जिनका कई बार उन्हें फायदा मिलता है और कई बार नहीं. कुछ लोग इन सीटों के ऊपर की ओर लगे स्टीकरों को ही उखाड़ कर फेंक देते हैं.पुरुष यात्री महिलाओं की सीटों पर अक्सर बैठे मिल जाया करते हैं. और अगर उन्हें उठने को कहा जाया तो...कहते हैं "जहाँ महिलाएं लिखा हो वहां बैठिये."  या फिर कहते रह जाने के बावजूद उठते नहीं हैं. ऐसे में दिल्ली सरकार ने इस से निजात पाने के लिए नयी तरकीब निकाली है की महिलाओं की सीटों में वृद्धि कर दी जाये. यानी की अब महिलाओं के लिए पच्चीस फीसदी सीटें अरक्षित होंगी सभी डीटीसी बसों में. यानी की अब तक तो 6 सीटें हुआ करती थीं महिलाओं के लिए अब वो बढ़कर 12 हो जाएँगी.और साथ ही उन्हें गुलाबी रंग में भी रंग दिया जायेगा...ताकि पुरुष यात्रियों को ये याद दिलाने की ज़रूरत ना पड़े की ये महिलाओं की है.लेकिन इस खबर पर भी कई पुरुषों की इस प्रकार की प्रतिक्रिया देखने को मिली है की...
  • महिलाओं को पच्चीस ही क्यों पूरी बस ही अरक्षित कर दो.
  •  तनख्वाह पुरुषों के बराबर लेती हैं तो सीटों में आरक्षण क्यों? 
  • महिलाओं के लिए ही हर जगह ही आरक्षण क्यों?
  अब सवाल ये उठता है की क्या ये सब कर देने से इन सब पर बंदिशें लग पाएंगी जिन्हें रोकने के लिए ये किया जा रहा है. वैसे देखा जाये तो सामान्य पुरुषवादी नजरिया ये है कि 'अपने घर की औरत की रक्षा की जाये. लेकिन दूसरी औरतों को इस्तेमाल की चीज़ समझा जाये. यही वजह है की बसों की भीड़ में अक्सर महिलाओं के साथ बदसलूकी की जाती है. यहाँ सरदार जी की बात को ही देखा जाये तो ठीक से समझ आ जाता है की क्यों महिलाओं के लिए सीटों को अरक्षित किया गया है.
  

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