अगर आप मात्र एक कार के मालिक हैं तो क्या आपको ज़रा भी इल्म है की आप सिर्फ एक कार के ज़रिये देश के सकल घरेलू उत्पाद और सकल घरेलु उत्पाद क्या आप देश के विकास में भी कितना बड़ा योगदान निभाते हैं. भले ही रूपया कितना भी गिर रहा हो. लेकिन आप देश के गिरते हुए रुपये को उठाने में कितनी सहायता करते हैं. ये शायद आप भी नहीं जानते.
बीते दिनों पेट्रोलियम मंत्रालय ने वित्त मंत्रालय को पत्र लिख कर गिरते हुए रुपये के प्रति चिंता जताई और अपना रोना भी सुनाया.की रुपये के गिरने के एवज में वो डीज़ल और केरोसिन के दामो में इजाफा करना चाहते हैं. और ऐसा करना ज़रूरी भी है. और ये गाज न सिर्फ डीज़ल और केरोसिन पर गिरेगी बल्कि घरेलू गैस सिलेंडरों के दाम भी आसमान की बुलंदियों पर पहुंचेंगे. दरअसल ये सब खबर 10 जुलाई को पेट्रोलियम मंत्री वीरप्पा मोइली ने चिदंबरम को लिखे पत्र में कही हैं .दरअसल मोइली के अनुसार इस वित्त वर्ष में रूपए में 9.23 फीसदी की दर से गिरावट आई है.तो इन हालातों को देखे जाये तो तेल कंपनियों को 1,23,000 करोड़ रुपये की की सब्सिडी की दरकार होगी. लेकिन दूसरी तरफ इस वर्ष तेल कंपनियों के लिए 65,000 करोड़ रुपये की ही सरकारी रियायत तय की गयी थी. यानि की दोगुनी राशी की ज़रूरत पड़ेगी कंपनियों को. यानी कि रूपया अगर गिर रहा है तो ईंधन के दाम उठा दो. ऐसे में कुछ हो न हो कंपनियों की अपनी भरपाई तो हो ही जाएगी. फिर चाहे इसके एवज में आम जनता की जेब कटती है तो कटे. किसे फर्क पड़ता है. दो-चार दिन के हो-हल्ले के बाद हमेशा की तरह फिर से सब कुछ शांत हो ही जायेगा और बढ़ी हुई कीमतें लागू रहेंगी. दो चार महीने बाद फिर से ऐसा होगा तो फिर से दामों में बढ़ा दिया जायेगा.
हाँ तो हम बात कर रहे थे आपकी एक गाड़ी की. देखा जाये तो दिन पे दिन गाड़ियों की तादात बढती जा रही है शहरों में. और उसी के अनुसार तेल की खपत बढ़ रही है. आज एक ही घर में तीन से चार गाड़ियाँ तक देखी जा सकती हैं. तो गाड़ियों के बढ़ने के पीछे और तेल की खपत के पीछे सबसे बड़ा फेक्टर जीडीपी नामक कार्यकारणी का है. क्योंकि अगर एक गाड़ी बिकती है तो वो देश के जीडीपी के खाते में इजाफा करती है. मात्र एक कार बिकने से कार की कम्पनी को फायदा पहुँचता है. फिर उसके बाद अगर वही कार सड़क पर चलती है तो रोड टैक्स के ज़रिये सरकार को पैसा मिलता है. उसके बाद अगर कार कोई कानून तोडती है तो चालान का पैसा. फिर अगर वही गाड़ी कोई एक्सीडेंट करती है तो डॉक्टर की रोज़ी-रोटी निकल पड़ती है. ना सिर्फ इतना आप एक गाडी के बढ़ने से सड़कों पर लगने वाले जाम में भी इजाफा कर सकते हैं. जिस से न सिर्फ तेल की खपत बढ़ेगी बल्कि सड़कों पर होने वाली बिक्री के बढ़ोतरी कर सकते हैं. जैसे बच्चों के द्वारा फूल,अखबार,टिशु पेपर,खिलौने वगैरह-वगैरह. और इसी से प्रभावित हो कर बाल-मजदूरी को भी बढ़ावा दे सकते हैं. और ऐसे में अगर आप काम-काजी महिला हैं तो तब तो कहने ही क्या. जाम के दौरान अगर घर पहुँचने में देर हो गयी तो बाहर से खाना आर्डर कर के रेस्टोरेंट्स का भला कर सकते हैं.
तो इसका मतलब आप समझ रहे हैं न की अगर आप एक और गाडी खरीदते हैं तो आप कितने लोगों को रोज़गार देंगे और साथ ही साथ सरकारी कोष को भरने में भी कितनी अहम् भूमिका अदा करेंगे. इसी के साथ आप ये ना भूलिए की तेल की कम्पनियाँ आपको कितनी दुआएं देंगी. फिर चाहे भरपाई में घरेलु गैस में भी दामों की बढ़ोतरी हो. क्या फर्क पड़ता है. वैसे भी चने के साथ घुन तो पिसता ही है न. तो ऐसे में गाडी खरीदकर देश के विकास में योगदान देने से चूकिएगा मत ज़रा भी.
बीते दिनों पेट्रोलियम मंत्रालय ने वित्त मंत्रालय को पत्र लिख कर गिरते हुए रुपये के प्रति चिंता जताई और अपना रोना भी सुनाया.की रुपये के गिरने के एवज में वो डीज़ल और केरोसिन के दामो में इजाफा करना चाहते हैं. और ऐसा करना ज़रूरी भी है. और ये गाज न सिर्फ डीज़ल और केरोसिन पर गिरेगी बल्कि घरेलू गैस सिलेंडरों के दाम भी आसमान की बुलंदियों पर पहुंचेंगे. दरअसल ये सब खबर 10 जुलाई को पेट्रोलियम मंत्री वीरप्पा मोइली ने चिदंबरम को लिखे पत्र में कही हैं .दरअसल मोइली के अनुसार इस वित्त वर्ष में रूपए में 9.23 फीसदी की दर से गिरावट आई है.तो इन हालातों को देखे जाये तो तेल कंपनियों को 1,23,000 करोड़ रुपये की की सब्सिडी की दरकार होगी. लेकिन दूसरी तरफ इस वर्ष तेल कंपनियों के लिए 65,000 करोड़ रुपये की ही सरकारी रियायत तय की गयी थी. यानि की दोगुनी राशी की ज़रूरत पड़ेगी कंपनियों को. यानी कि रूपया अगर गिर रहा है तो ईंधन के दाम उठा दो. ऐसे में कुछ हो न हो कंपनियों की अपनी भरपाई तो हो ही जाएगी. फिर चाहे इसके एवज में आम जनता की जेब कटती है तो कटे. किसे फर्क पड़ता है. दो-चार दिन के हो-हल्ले के बाद हमेशा की तरह फिर से सब कुछ शांत हो ही जायेगा और बढ़ी हुई कीमतें लागू रहेंगी. दो चार महीने बाद फिर से ऐसा होगा तो फिर से दामों में बढ़ा दिया जायेगा.
हाँ तो हम बात कर रहे थे आपकी एक गाड़ी की. देखा जाये तो दिन पे दिन गाड़ियों की तादात बढती जा रही है शहरों में. और उसी के अनुसार तेल की खपत बढ़ रही है. आज एक ही घर में तीन से चार गाड़ियाँ तक देखी जा सकती हैं. तो गाड़ियों के बढ़ने के पीछे और तेल की खपत के पीछे सबसे बड़ा फेक्टर जीडीपी नामक कार्यकारणी का है. क्योंकि अगर एक गाड़ी बिकती है तो वो देश के जीडीपी के खाते में इजाफा करती है. मात्र एक कार बिकने से कार की कम्पनी को फायदा पहुँचता है. फिर उसके बाद अगर वही कार सड़क पर चलती है तो रोड टैक्स के ज़रिये सरकार को पैसा मिलता है. उसके बाद अगर कार कोई कानून तोडती है तो चालान का पैसा. फिर अगर वही गाड़ी कोई एक्सीडेंट करती है तो डॉक्टर की रोज़ी-रोटी निकल पड़ती है. ना सिर्फ इतना आप एक गाडी के बढ़ने से सड़कों पर लगने वाले जाम में भी इजाफा कर सकते हैं. जिस से न सिर्फ तेल की खपत बढ़ेगी बल्कि सड़कों पर होने वाली बिक्री के बढ़ोतरी कर सकते हैं. जैसे बच्चों के द्वारा फूल,अखबार,टिशु पेपर,खिलौने वगैरह-वगैरह. और इसी से प्रभावित हो कर बाल-मजदूरी को भी बढ़ावा दे सकते हैं. और ऐसे में अगर आप काम-काजी महिला हैं तो तब तो कहने ही क्या. जाम के दौरान अगर घर पहुँचने में देर हो गयी तो बाहर से खाना आर्डर कर के रेस्टोरेंट्स का भला कर सकते हैं.
तो इसका मतलब आप समझ रहे हैं न की अगर आप एक और गाडी खरीदते हैं तो आप कितने लोगों को रोज़गार देंगे और साथ ही साथ सरकारी कोष को भरने में भी कितनी अहम् भूमिका अदा करेंगे. इसी के साथ आप ये ना भूलिए की तेल की कम्पनियाँ आपको कितनी दुआएं देंगी. फिर चाहे भरपाई में घरेलु गैस में भी दामों की बढ़ोतरी हो. क्या फर्क पड़ता है. वैसे भी चने के साथ घुन तो पिसता ही है न. तो ऐसे में गाडी खरीदकर देश के विकास में योगदान देने से चूकिएगा मत ज़रा भी.
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